For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "सजा कर रख लिया हमने जो खाली आबगीने को "

============ग़ज़ल =============
उड़ा कर छत हवा जब जब करे जाया पसीने को 
गरीबी कोसती फिरती है तब सावन महीने को 

बफा करने के बदले बेबफाई जब मिली यारो 
बढ़ा दर्द-ए जिगर हद से नहीं आराम सीने को 

मेरे हमराज मुझको इक शराबी मान बैठे हैं 
सजा कर रख लिया हमने जो खाली आबगीने को 

इलाहबाद जाकर पापियों ने पाप यूँ धोये 
हुई गंगा वहाँ मैली बचा पानी न पीने को

क्या सूरत है क्या सीरत है क्या है तकदीर पत्थर की 
उसे मालूम हो जिसने तराशा इस नगीने को

मचल कर जो समंदर में बड़े तूफ़ान लाती हैं 
वही मौजें चलाती हैं जवानी के सफीने को 

उजाले बांटने को दीप जलता आग पी पी कर 
मैं नफरत पी रहा हूँ "दीप" की मानिंद जीने को 

संदीप पटेल "दीप"

Views: 486

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 8:59pm

आदरणीय आरती जी सादर

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार इस हौसलाफजाई के लिए

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 8:58pm

आदरणीय नादिर खान साहब सादर

आपको ग़ज़ल के ये अशआर पसंद आये और आपसे दाद मिली

आपका बहुत बहुत शुक्रिया

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 8:56pm

आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम

क्षमा चाहता हूँ इतने बिलम्ब में जबाब देने के लिए

मतले में गरीबी इसीलिए कहा क्यूंकि लोग अक्सर गरीबी को कोसते हैं लेकिन बेचारी गरीबी का इसमें क्या दोष इसीलिए

और हाँ जहां तक मेरा ज्ञान है क्या को गिराया जा सकता है

मैं और किसी की आस्था को ठेस ????

शायद लेखन में दोष है कहीं मेरे संभवतः मैं इसमें जल्द ही सुधार करने का प्रयास करूँगा

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार सर जी

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर

Comment by Aarti Sharma on January 30, 2013 at 8:16pm

बहुत खूब संदीप जी..बधाई स्वीकारें..

Comment by नादिर ख़ान on January 23, 2013 at 1:17pm

मचल कर जो समंदर में बड़े तूफ़ान लाती हैं 
वही मौजें चलाती हैं जवानी के सफीने को 

उजाले बांटने को दीप जलता आग पी पी कर 
मैं नफरत पी रहा हूँ "दीप" की मानिंद जीने को 

क्या बात है, बहुत  उम्दा बात कही आपने बधाई ... 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2013 at 10:11pm

मतला बरबस ही आकर्षित करता है, पर गरीबी कोसती है ? यह बात कुछ बन नहीं रही |

//इलाहबाद जाकर पापियों ने पाप यूँ धोये 
हुई गंगा वहाँ मैली बचा पानी न पीने को//

यह शेर एक तरह से आस्था का मज़ाक उड़ाता लग रहा, फिर भी मिसरा उला का समर्थन मिसरा सानी नहीं कर रहा, ऐसा लग रहा है जैसे वहां के लोग पीने के पानी हेतु गंगा जल पर ही निर्भर है | 

//क्या सूरत है क्या सीरत है क्या है तकदीर पत्थर की//

क्या ...क्या को गिराकर पढ़ा जा सकता है ?

//मचल कर जो समंदर में बड़े तूफ़ान लाती हैं 
वही मौजें चलाती हैं जवानी के सफीने को //

बढ़िया शेर, बधाई हो |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service