======ग़ज़ल========
बहरे हजज मुसद्दस् महजूफ
वजन-1222/1222/122
दियों में तेल हम भरने लगे हैं
अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं
नहीं रूकती हमारी हिचकियाँ भी
हमें वो याद यूँ करने लगे हैं
हुईं बेचैन हाथों की उंगलियाँ
पुराने जख्म जो भरने लगे हैं
नहीं समझे हमारी चाहतों को
बिछड़ के हाथ वो मलने लगे हैं
चरागों को बुझाने अब अँधेरे
हवा के कान फिर भरने लगे हैं
जवानों ने भरी हुंकार जबसे
सियासी चाल फिर चलने लगे हैं
शरारत कर रहे जो तीन बन्दर
मदारी को बड़े खलने लगे हैं
पुरानी दोस्ती का वास्ता दे
मेरे अपने मुझे छलने लगे हैं
रदीफो काफिया बेबह्र लेकर
अनाडी शायरी करने लगे हैं
मिटाने गर्दिशों को नौजवाँ खुद
मशालों की तरह जलने लगे हैं
हमारे हाँथ चन्दन हो गए क्या
अफई ऐसे यहाँ पलने लगे हैं
नहीं मालूम था अपने ठगेंगे
समय ये देख सब डरने लगे हैं
गधों को आपने घोड़ा बनाया
हरी फसलें वही चरने लगे हैं
चढ़े थे दीप कुछ खुर्शीद बनके
समय के साथ वो ढलने लगे हैं
संदीप पटेल "दीप"
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
दियों में तेल हम भरने लगे हैं
अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं...वाह बहुत कुछ शामिल करता शेर
रदीफो काफिया बेबह्र लेकर
अनाडी शायरी करने लगे हैं .....क्या बात कही है, वाह
छोटी बह्र पर सुन्दर ग़ज़ल आ. संदीप जी , हार्दिक बधाई
जनाब संदीप पटेल जी ,, खूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे-दिल से मुबारकबाद ,,,कुछ शेर बेहद उम्दा बन पड़े हैं ,,जैसे,,१, नहीं रुकतीं हमारी हिचकियाँ भी ,, हमें याद वो यूं करने लगे हैं | २, चिरागों को बुझाने अब अँधेरे , हवा के कान फिर भरने लगे हैं | वाह वा क्या बात है ,,,बेहद उम्दा
संदीप जी, वाह ! क्या खूबसूरत ग़ज़ल....
हुईं बेचैन हाथों की उंगलियाँ
पुराने जख्म जो भरने लगे हैं... Waaah !!! Bahut Khoob Mitr !!!
नहीं समझे हमारी चाहतों को
बिछड़ के हाथ वो मलने लगे हैं ........बहुत सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई .........
आदरणीय राजेश झा जी सादर प्रणाम
आपको मेरी ग़ज़लों की कहन भाई और आपसे बधाई मिली
सच कहूँ तो जब मित्रों अग्रजों की प्रतिक्रिया आती है तो मनोबल बढ़ जाता है
मुझ पर ये स्नेह यूँ ही बनाय रखिये
बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
आदरणीय अनंत भाई जी सादर
इस हौसलाफजाई के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया
आपकी सारी दाद सादर क़ुबूल की
बहुत बहुत आभार आपका
आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस प्रकार प्रतिक्रया पाकर मन उछल रहा है
मनोबल बढ़ गया है ............................
किस तरह धन्यवाद प्रेषित करूँ
अपना ये स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाए सर जी
आपका बहुत बहुत आभार
चरागों को बुझाने अब अँधेरे
हवा के कान फिर भरने लगे हैं----- वाह । क्या चित्र उपस्थित किया है
शरारत कर रहे जो तीन बन्दर
मदारी को बड़े खलने लगे हैं----- इशारा कुछ-कुछ समझ में आया पर लेखक ही अधिक स्पष्ट कर सकते हैं
आप बेहतरीन गजलें लिखते रहें और इसी प्रकार हमें पढ़ाते रहें, सादर
वाह मित्रवर वाह ग़ज़ल में ऐसा गया ढल की बस आनंद आ गया, सुन्दरता से ओतप्रोत बेहद शानदार ग़ज़ल सभी के सभी अशआर माशाल्लाह गज़ब के हैं हार्दिक बधाई के साथ - साथ ढेरों दाद भी कुबूलें. सादर
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