जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने
खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने
फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको
कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने
सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन
हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने
अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है
रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने
खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ
जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??
संदीप पटेल "दीप"
जुरत-आमोज - साहस सिखाने वाला
खगूर-ए-हम्द - प्रशंसा करने के आदी
फ़िक्रे-फ़र्दा - कल की चिन्ता
Comment
आदरणीया उपासना जी .....ग़ज़ल को सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया
आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम
आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन सार्थक हुआ ..
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
आदरणीय भाई संदीप जी सादर, वाह वाह बहुत बढ़िया गजल रची है.बहुत बहुत दाद कबूलें. इस बात के लिए भी कि कुछ उर्दू लफ्जों का हिंदी मायना भी आपने लिख दिया है.वरना हम जैसे जो हिंदी ठीक से नहीं समझ पाते उर्दू को कैसे समझ पायें.आभार.
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपसे दाद मिली
बहुत हर्ष हुआ
अपना ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया
प्रिय संदीप शानदार ग़ज़ल कही है उर्दू शब्दों का इस्तेमाल भी सही जगह किया है दाद कबूलें
जी आदरणीय ये तो सिर्फ प्रयोग की तरह इस्तेमाल कर लिया है आगे ख्याल रखूँगा की आसान शब्दावली स्तेमाल हो
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सराहना हेतु
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपने ग़ज़ल पसंद की उसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार
स्नेह यूँ ही बनाए रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार भाई अरुण जी .......
आदरणीय गुरदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपने सच कहा लेकिन उन दोनों शेर को लिखते समय एक जुनू था की कहीं ये अर्थ भूल न जाऊं तो प्रयोग ही कर लेता हूँ
इस तारीफ़ और हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये
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