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इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

इक प्रयोग "दुर्मिल ग़ज़ल "

सपने किसके किससे कम हैं
सबके अपने अपने गम हैं

पर पीर नहीं दिखती अब तो
हर मानव पत्थर के सम हैं

अपने अफई बन के डसते
बस सोच यही अँखियाँ नम हैं

भरते दम ख्वाब सजा कल के
मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को कह वारिस संस्कृति के
फिरते कितने अब गौतम हैं

न विरोध कहीं न बगावत है
सब चोर अभी तक कायम हैं

सब दीमक पाल रहे खुद ही
वन में अब साल न शीशम हैं

अब "दीप" बसंत नहीं खिलता
बस रंज भरे हर मौसम हैं

संदीप पटेल "दीप"

"2 दुर्मिल सवैया छंद"

सपने किसके किससे कम हैं सबके अपने अपने गम हैं
पर पीर नहीं दिखती अब तो हर मानव पत्थर के सम हैं
अपने अफई बन के डसते बस सोच यही अँखियाँ नम हैं
भरते दम ख्वाब सजा कल के मन दंभ भरे सब बेदम हैं

खुद को
कह वारिस संस्कृति के फिरते कितने अब गौतम हैं
न विरोध कहीं न बगावत है सब चोर अभी तक कायम हैं
सब दीमक पाल रहे खुद ही वन में अब साल न शीशम हैं
अब "दीप" बसंत नहीं खिलता बस रंज भरे हर मौसम हैं

संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 4:06pm
आदरणीय विवेक जी इस सरहना के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर 
Comment by Vivek Shrivastava on February 7, 2013 at 12:31am

आप को मैं एफ बी पे पढता रहता हूँ आप उम्दा लिखते हैं और ये दोनों हि अभिव्यक्ति अद्भुत हैं 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:47pm

आदरणीय विजय सर जी सादर प्रणाम
इस प्रयोग को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रिया
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:46pm

आदरणीया भावना जी सरहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका

Comment by vijay nikore on February 6, 2013 at 6:43pm

आदरणीय संदीप जी:

सपने किसके किससे कम हैं
सबके अपने अपने गम हैं 
 
आपने इन दो पंक्तियों में ही बहुत-कुछ कह दिया है।

सारी रचना के लिए बधाई।

विजय निकोर

Comment by भावना तिवारी on February 6, 2013 at 6:01pm

QAMAAL QAMAAL QAMAAL ............BAHUT SUNDAR ...ADBHUT GEYATAA....BADHAI ...!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:43pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

आपकी इस तरह प्रशंसा पाकर मन उमंग से फूला नहीं समा रहा है

लगा की शायद आज
हुई सहाय शारद अस मानू

आपके कहे गए सुझाव इन दोनों अशआरों में चार चाँद लगा रहे हैं
इनका भार दुगुना हुआ जा रहा है गुरुदेव

गुरुदेव अपना स्नहे और आशीष यूँ ही मुझ पर बनाये रखें

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:06pm

आदरणीय गुरुदेव क्षमा चाहता हूँ
अंतिम बिंदु में आपने कहा के ये इस मंच के लिए गौरव के क्षण है

यकीन मानिए और ऐसा साहित्यिक मंच और कोई हो ही नहीं सकता है
ये मेरे लिए गौरव की बात है के मैं इस मंच पे अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कर पाता हूँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 5:04pm

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम

आपने प्रयास को सराहा और मेरा उत्साहवर्धन किया उसके लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद और सादर आभार

इस प्रयोग की सफलता का श्रेय ओ बी ओ में उपस्थित मेरे गुरुदेव सौरभ सर और सभी अग्रजों और विज्ञों का निःस्वार्थ दिया गया ज्ञान और मनोबल को ही जाता है
मुझे गर्व है के मैं इस ओ बी ओ परिवार का हिससा हूँ

अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 4:58pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

सच कहा आपने ये माँ शारदे का आशीर्वाद ही है के हमें आज इतना स्नेह और आप विज्ञ जनों का मार्गदर्शन मिल रहा है

मुझे याद है के एक बार किसी ने मेरा मजाक उड़ाते हुए शारदा का औरस पुत्र कहा था

और कभी कभी लगता है के वो गलत नहीं था

ये स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये मुझ पर

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