For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुन्देलखंडी लोकगी "बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ"

दोस्तों इक बुन्देलखंडी लोकगीत लिखने का प्रयास किया है 
आप सभी से स्नेह की आशा है 

बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ
नैयाँ इतनी कमाई मैं का करूँ 

पाला पड़ो है जम के भैया 
फसल अकड के लैय जम्हैया 

खितवा सादा उगाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

बिना खाद के फसल न होय 
खाद के लाने सबरे रोये 

इल्ली नींद उड़ाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

जस तस काटी फसल बिचारी 
मंडी में हुई मारा मारी 

आजहूँ नहीं बिक पाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

लड़का बोले कपडा ले आओ 
दद्दा बोले सौदा ले आओ 

अम्मा मांगे दवाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

दो की चीज़ भई है दस की 
कीमत नैयाँ अपने बस की 

कैसे होय कमाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

कितने बरस से कछु ने लाये 
झूठे सपने काहे दिखाए 

मांगे जबाब लुगाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ

संदीप पटेल “दीप

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2013 at 8:21pm

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है, भाई संदीप जी. विवश समाज की दशा को उभारती और साझा करती रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 4, 2013 at 9:04am

आदरणीय संदीप जी  सादर, सुन्दर बुन्देलखंडी लोकगीत पर बधाई स्वीकारें.कुछ वर्ष पहले  दोपहर में आद. सुन्दरलाल विश्वकर्मा जी के बुन्देलखंडी लोकगीत आकाशवाणी जबलपुर पर बहुत सुनने मिलते थे.सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 3, 2013 at 1:25pm
बहुत अच्छा प्रयास भाई संदीप कुमार पटेल जी, बधाई हो 
आज ही कुछ लादो भैया 
और बढ़ेगी महंगाई भैया 
 
फिर कहोगे अकड़ के भैया 
बैरन हुई महंगाई मै का करूँ 
 
बहाने बाजी और करों न भैया 
ढीला करों एंटी से रुपैया 
 
क्यू मुझको सताए जात हो भैया 
कछु भी न रहा सम्मान मई का करू 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 12:33pm
अकड़ पढ़ें प्लीज 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 12:32pm

पाला पड़ो है जम के भैया 
फसल अकड के लैय जम्हैया ----

हाहाहा क्या चित्र उकेरा है प्रिय संदीप ,वैसे अकाद के तो मर ही जायेगी बेचारी कहाँ सो पाएगी 

 कितने बरस से कछु ने लाये 
झूठे सपने काहे दिखाए 

मांगे जबाब लुगाई मैं का करूँ 
बैरन हुई मँहगाई मैं का करूँ------

वो तो पूछेगी ही जरूर झूठे सपने दिखाए होंगे ,वाह मजा आ गया ये अलग सी रचना पढ़ के हार्दिक बधाई इस बढ़िया प्रस्तुति हेतु 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
19 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service