========ग़ज़ल=======
संदली सा बदन है क्या कहिये
फूल जैसी छुअन है क्या कहिये
जल उठा है बदन तुझे छूकर
हुश्न है या अगन है क्या कहिये
सर से पा तक तुझे वो छूता है
आपका पैरहन है क्या कहिये
तीर नज़रो के जब चलें दिल पर
होती मीठी चुभन है क्या कहिये
घर मेरा आप जैसा गुल पा कर
खुद को समझे चमन है क्या कहिये
इश्क का रोग लग गया शायद
खोया खोया जेहन है क्या कहिये
हमसे नज़रें चुराते फिरते हैं
राज-ए-उल्फत दफ़न है क्या कहिये
"दीप" सब जानते हैं ये तेरी
दिल्लगी आदतन है क्या कहिये
संदीप पटेल "दीप"
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सर से पा तक तुझे वो छूता है
आपका पैरहन है क्या कहिये
तीर नज़रो के जब चलें दिल पर
होती मीठी चुभन है क्या कहिये
घर मेरा आप जैसा गुल पा कर
खुद को समझे चमन है क्या कहिये
वाह भाई संदीप जी सादर, सुन्दर गजल क्या कहिये. बधाई स्वीकारें.
कोमल सी सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आ. संदीप जी
भाईजी, पारंपरिक ग़ज़लगोई कीजिये, मगर उन्हीं बिम्बों से कुछ नयापन भी तो दिखे, ये कहना था मेरा. शृंगार बुरा विषय थोड़े न है..
:-)))
श्रृंगार रस से सराबोर इस झूमती हुई गज़ल के लिए बधाई..........
आदरणीय विजय सर जी तहे दिल से शुक्रिया इस हौसलाफजाई के लिए
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
गुरुदेव इस बार मैंने पारम्परिक ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है जिसमें श्रिंगार को पिरोने की कोशिश की है
आपकी आशाओं में खरा उतरने का भरसक प्रयास करूँगा
स्नेह और आशीष बनाये रखिये
आदरणीया महिमा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल की पसंदगी के लिए
गज़ल अच्छी लगी।
विजय निकोर
घर मेरा आप जैसा गुल पा कर
खुद को समझे चमन है क्या कहिये
हर संतुष्ट पति का दिल स्वर पा गया है. .. :-))))
वैसे, पूरी ग़ज़ल के परिप्रेक्ष्य में कहूँ तो आपसे कुछ और बेहतर की अपेक्षा ग़लत नहीं है.. .
क्या बात है ...बधाई स्वीकार करें
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