"समीकरण"
कागज़ पर
दिल के समीकरणों से उलझा
सिद्ध क्या करना है ???
मुहब्बत
नफरत
आज़ादी
या बंदिशें
क्या हल होगा ??
कर्म करो फल बाद में देखेंगे
किन्तु आगाज कहाँ से करूँ
दिल से
या दिमाग से ???
लीजिये बन गया न
समीकरण
एक वाक्य
हमारे बड़े बड़े शाश्त्र कहते हैं
प्रेम अनंत है
अर्थात
प्रेम बराबर अनंत
अनंत अर्थात
अर्थात
हाँ गगन
तो प्रेम बराबर गगन
अर्थात प्रेम
गगन के समतुल्य है
और प्रेमी
के अन्दर गगन आसमान समाहित है
और आसमान
पर्याय रहा है
झूठे दंभ का
अर्थात
प्रेम बराबर झूठ और दंभ
झूठ अर्थात
अत्यधिक मीठा
क्यूंकि सच तो कड़वा होता है न
मतलब
प्रेम अत्यधिक मीठा भी है
किन्तु कुछ विशेषज्ञों ने कहा है
अत्यधिक मीठे में ही
कीड़े लगने की संभावना होती है
कीड़े लगना
उसके खराब होने को दर्शाते हैं
और कोई चीज़ यदि खराब हो जाए
तो प्रकृति में विलीन हो जाती है
और प्रकृति अर्थात
पञ्च तत्व
जिसमे स्वयं गगन में भी सम्मलित है
और गगन अनंत है
तो इस प्रकार सिद्ध होता है
के
प्रेम अनंत है
और बाकी बचा दंभ
जो स्वयं अनंत है
अर्थात प्रेम अनंत है
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आदरणीय अशोक सर जी , आदरणीय मनोज सर जी , आदरणीया महिमा जी , आदरणीया डॉ प्राची जी ,,,,,आप सभी ने समीकरण में इसके सिद्ध होने की मोहर लगा दी अर्थात ये समीकरण सर्व सिद्ध हो गया ,,,,,,अपना ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का
बहुत सुन्दर संदीप जी ........... सुन्दर समीकरण की रचना के लिए
हाहाहा प्रेम के समीकरणों की ऐसी एनालिसिस कभी नहीं देखी.. कभी नहीं सुनी. आ.संदीप जी
सादर बधाई इन उलझाते समीकरणों के लिए.
आदरणीय संदीप जी सादर, आप कितना भी घुमाओ प्रेम तो किसी के लिए अनंत रहेगा और किसी के लिए अंत.सुंदर रचना बधाई स्वीकारें.
क्या घुमाया आपने .. :) चक्कर आ गए ... बधाई आपको .. इस नए समीकरण की :)
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