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जागे आर्यावर्त, गर्त में जाय दुश्मनी -

मौलिक-अप्रकाशित 

एकनिष्ठ हों कोशिशें, भाई-चारा शर्त |

भाग्योदय हो देश का, जागे आर्यावर्त |

जागे आर्यावर्त, गर्त में जाय दुश्मनी |

वह हिंसा-आमर्ष, ख़तम हों दुष्ट-अवगुनी |

संविधान ही धर्म, मर्ममय स्वर्ण-पृष्ठ हो |

हो चिंतन एकात्म, कोशिशें एकनिष्ठ हों ||

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Comment by रविकर on February 8, 2013 at 2:02pm

बहुत बहुत आभार -
आभार आप का ||

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on February 8, 2013 at 12:20am

आदरणीय रविकर जी देश के प्रति सजग करने वाला क्या खूबसूरत कुंडलिया छंद कहा है आपने हार्दिक बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 11:50pm

भाई रविकर आपका, खूब-खूब यह छंद
इतनी उन्नत सोच पर, दिल में है आनंद
दिल में है आनन्द, झूमती मन में डाली
धन्य धन्य हम लोग, बजायें चुटकी ताली
छंदों पर हो काम, हुई हो कविता गाई
मस्ती में अधलेट, करें हम रचना भाई.. .    ....  


बधाई भाईजी.... .

Comment by MAHIMA SHREE on February 7, 2013 at 10:55pm

एकनिष्ठ हों कोशिशें, भाई-चारा शर्त |

भाग्योदय हो देश का, जागे आर्यावर्त...

क्या खूब कहा सर आपने ... बहुत-२ बधाई .. सपना सच हो जाए ... आमीन!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 7, 2013 at 8:18pm

क्या बात है सर जी
जागो आर्यावर्त सुन्दर आह्वान है

बहुत बहुत बधाई सर जी

कृपया ध्यान दे...

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