मौलिक / अप्रकाशित
खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल ।
फरी-फरी फ़रियाँय फिर, घरी-घरी घंटाल ।
घरी-घरी घंटाल, मीडिया माथा-पच्ची ।
सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।
परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।
करें शुद्ध व्यवसाय, आपदा क्यूँकर अखरी ??
Comment
बहुत बहुत आभार आदरेया / आदरणीय ||
जय हो .............इक दम खरी खरी के लिए बधाई आदरणीय
जबर्दस्त कुंडलियां है, एक शब्द भी हटा नहीं सकते ना ही किसी अन्य शब्द से प्रतिस्थापित नहीं कर सकते । आप जैसे रचनाकारों को पढ़कर मन किसी और जगह चला जाता है, सादर
सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।
परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।---वाह वाह सामयिक कुण्डलिया पत्रकारिता कि जम कर ख़बर ली है बहुत बहुत बधाई भाई जी
मतलब, इस बीच फिर आप फ़ैज़ाबाद की गलियों और अयोध्या की घाटों से हो आये ? जय हो प्रभुवर !!!!....
धनबाद आये बसने, क्यों रविकर जी आप
आभार आदरणीय सौरभ जी, आदरणीय बागी जी ||
सादर --
धनबाद आ गया हूँ -
आदरणीय सौरभ जी-
नियमित होने की कोशिश चल रही है-
आभार -
आदरणीय रविकर जी, आपने इस कुंडली के माध्यम से चौथे खम्भे के खोखलेपन को उजागर कर दिया है , यही तो हो रहा है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |
आदरणीय रविभाईजी, आपकी कुण्डलिया किसी पद्य-मंजूषा की तरह होती हैं. हम इसी कारण आपकी कुण्डलियों के शैदाई हैं.
प्रस्तुत छंद के कथ्य मे भी मीडिया के अतुकांत व्यवहार को आपने क्या खूब उकेरा है!.. वाह !!
एक-एक शब्द सान्द्र है. खरी-खरी खोटी-खरी.. वाह वाह ! और नाम दिया घंटाल !! बहुत खूब आदरणीय ! ..हा हा हा .. . फरी-फरी फरियायँ फिर... कह कर आपने मीडिया की व्यावसायिक टुच्चई को बखूबी साझा किया है.
यह सही है कि ख़बर देने के नाम पर मानवीयता से समझौता किसी तरह से अनुकरणीय नहीं है. लेकिन इस नाम पर जो कुछ हो रहा है, वह आपके संवेदनशील मन को झकझोर गया. आपकी सोच-प्रक्रिया को मैं ससम्मान स्वीकार करता हूँ.
एक शिकायत भरा प्रश्न - इतने दिन भाईजी कहाँ रहे ???
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online