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आदरणीया मंजरी जी आलेख को पढ़कर आपने उसपर अपनी प्रतिक्रिया दी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !! आप स्वयं काशी की प्रमुख समकालीन कवयित्री हैं और आपके कार्य सराहनीय हैं . हम सबको एक होकर साहित्य और समाज हित आगे बढ़ना है .
हार्दिक साधुवाद श्री सरन जी आपने जानकारी दी . हम सब इससे लाभान्वित होंगे . हिंदी भाषा और साहित्य के उन्नयन के लिए विश्व हिंदी संस्थान के कार्य और प्रयास स्तुत्य हैं !!
आदरणीय श्री सौरभ जी आपके विचार मार्गदर्शक हैं . और श्री कार्पानी जी को मेल पर मैं आपके विचारों से अवगत करा दूंगा ताकि वे इस बात का ख़याल रख सकें . हार्दिक आभार आपका !
अंतर्राष्ट्रीय फलक पर काशी के कवि " लेख उत्साहवर्धक है न केवल काशीवासियों के लिए बल्कि साहित्य जगत के लिए .
वैसे काशी का महात्म्य तो स्वतः सिद्ध है।
भाई अभिनव जी, नमस्कार। आपके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट "अंतर्राष्ट्रीय फलक पर काशी के कवि" पढ़ी। अच्छा लगा कि अब भारत के साहित्यमनीषि भारत से बाहर रह रहे हिंदी प्रेमियों के हिंदी प्रचार-प्रसार के प्रयासों को कुछ तजरीह देने लगे हैं। जो प्रयास कारपानी साहब हिंदी की सेव हित कर रहे हैं, स्तुत्य हैं लेकिन आपकी जानकारी के लिये यहाँ यह बता देना समिचीन होगा कि विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा इसी प्रकार के प्रयोग पहले से ही कर रही है। इस बारे में आप ’विश्व हिंदी संस्थान’ कि "विश्व कवि सम्मेलन २०१२- काव्यमाधुरी" संबंधी रिपोर्ट ओपन बुक्स आनलाइन पर पढ़ सकते हैं। आप यू ट्यूब पर जाकर काव्यमाधुरी लिंक पर जाकर देख भी सकते हैं कि किस प्रकार हमने समस्त विश्व के हिंदी कवियों से उनकी कविताएँ मगवाकर कनाडा में रह रहे हिंदी कवियों से पढ़्वाईं। यह सब हम आपकी व आपसे जुड़े सभी हिंदी सेवियों की जानकारी तथा श्री कारपानी जी की सहायता के लिये लिख रहे हैं कि वे हमसे जुड़ें ताकि विश्व पटल पर एक दूसरे के सहयोग से हम सब मिलकर हिंदी की सेवा को गति दे सकें।
धन्यवाद,
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान
यह सही है कि काशी कल ही नहीं आज भी कला-कक्ष के वातायन को खोले उसके असीम आकाश और वहाँ बहती हवाओं का भरपूर आनन्द लेती है. काशी की यह विशेषता ही है कि साहित्य के क्षेत्र में तब भी परंपरा को निभाते हुए प्रयोगों को जीती थी और आज भी उसी रूप में जीती है. एक तथ्य और भी है जिसकी ओर पाठकों और मर्मज्ञों का ध्यान अक्सर कम जाता है और वो ये कि काशी के शब्द-चितेरे अपने टेम्परामेण्ट के अनुसार शब्द चयन और उनका प्रयोग करते रहे हैं, बाहरी धमक या साहित्य के अभिजात्य वर्ग की परवाह किए बग़ैर. उदाहरण स्वरूप आज के प्रबुद्ध कलमाकारों की विशिष्ट कृतियाँ ही ले लीजिये. ये भाषा से वातावरण तैयार करते रहे हैं.
यदि इतालवी छायाकार कारपानी साहब इस तथ्य को प्रकाश में ला कर आवश्यक विस्तार दे सके तो समझिये यह काशी के रचनाकारों की विशिष्टता एवं रचनाकर्म में उनकी नोवेल्टी को सम्मान होगा.
भाई अभिनव जी, उद्येश्य विशेष के आलोक में आयोजित एक गोष्ठी पर आपका तबसिरा सारगर्भित लगा. हार्दिक बधाई.. .
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