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ग़ज़ल - शहर की रोशनी में गाँव की ढिबरी बुलाती है !

यहाँ की भागा दौड़ी में वो बेफ़िक्री ही  भाती  है ,
शहर की रोशनी में गाँव की ढिबरी बुलाती है ।

बनावट वाली राधाओं को उनके कृष्ण कब मिलते ,
वो तो मीरा के होते हैं जो उनको मन में गाती है ।

सिमटना दायरों में और बातें चाँद से करना ,
ये करता हूँ जो माँ मुझको तुम्हारी  याद आती है ।

पिता की डांट से गुमसुम जो बैठी थी उदासी में ,
लिपटकर माँ के आँचल से वो बच्ची खिलखिलाती है ।

अंधेरों की सियासत से जो जुगनू बनके लड़ते हैं ,
सुबह की लालिमा श्रद्धा से उनको  सिर नवाती है ।

हटाकर राह से पत्थर मुसाफिर बढ़ते जाना तुम ,
सफलता हौसले वालों को सीने से लगाती है ।

बुराई से बचो बापू के बन्दर सीख देते हैं ,
बुराई आदमी की खूबियों को घुन सी खाती है ।

बदन की ही तरह मन में भी कोई खोट मत रखना ,
मुलम्मों में सड़ी हो चीज़ तो भी गंध आती है ।
                            -   अभिनव अरुण 
                                  [19122012]

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Comment by Abhinav Arun on January 13, 2013 at 7:49am

SHRI आशीष नैथानी 'सलिल'JI bahut bahut abhari hoon apka aapne ghazal ko saraha aur mera utsahvardhan kiya .

{mere net pe hindi font in dino kaam kar nahi raha so roman me likhna pad raha hai - khed hai }

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 12, 2013 at 6:33pm

बेहतरीन ग़ज़ल !  हार्दिक बधाई अरुण जी !!!

Comment by Abhinav Arun on January 11, 2013 at 6:33pm

हार्दिक रूप से शुक्रिया shri ram shiromani pathak ji , respected Anwesha Anjushree ji , shri PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA ji mere utsaah vardhan ke liye >

Comment by ram shiromani pathak on January 10, 2013 at 9:41pm

good 1 boss

Comment by Anwesha Anjushree on January 10, 2013 at 7:00pm

Bhavpurn....apne jad se juda hokar bhi jude hum....sunder

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 5:07pm

हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर जी 

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2013 at 4:04pm

आदरणीय Shri धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,
हार्दिक रूप से शुक्रिया !!

Comment by Abhinav Arun on January 7, 2013 at 4:01pm

kya kahne shri rajiv ji bahut sundar kaha aapne waah !! aur shukriya ghazal pasand karne ke liye !!

Comment by Rajeev Mishra on January 7, 2013 at 3:46pm

abhinav bhai jee namaskar ,

bahut sundar bhav man mohak chitran 

DHIBRI  jaise shabd ko jo pray lupt ho rahe hain 

aapne apni rachna ke madhyam se ek baar phir us dhibri se ujala phailaya hai 

anmol rachna !

barbas ek pankti likhta hun 

kahan aagaye in pathron ke jhurmut jangal main 

jindgi to nadi kinare khet ki pagdandi par rahti hai !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 6, 2013 at 11:11pm

अच्छी ग़ज़ल है अरुण जी, बधाई स्वीकारें

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