हर आहट पे सांस थमी है आ भी जाओ ना॥
सूनी दिल की आज गली है आ भी जाओ ना॥
अरमानों के गुलशन में बस तेरा चर्चा है,
हरसू तेरी बात चली है आ भी जाओ ना॥
पूनम की इस रात में तेरी याद बहुत आती है,
तारों की बारात सजी है आ भी जाओ ना॥
आँखें प्यासी, होंठ हैं प्यासे, प्यासा मेरा मन,
दिल में भी इक प्यास दबी है आ भी जाओ ना॥
भूल गया हूँ ख़ुद को रब को और इस दुनिया को,
केवल तेरी याद बची है आ भी जाओ ना॥
तेरे बिन दिल का गुलशन वीराना लगता है,
मुरझाई चाहत की कली है आ भी जाओ ना॥
“सूरज” के ढलते ही यादें पीछा करती हैं,
तनहाई से जंग ठनी है आ भी जाओ ना॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
Comment
वाह! बहुत सुन्दर गजल आदरणीय डॉ. सुर्याबाली 'सूरज' जी बहुत बहुत दाद कुबुलें.
आदरणीय सूरज जी
सादर
वाह कहने के सिवा कर ही क्या सकता हूँ
बिमारी लाइलाज नही बता ही सकता हूँ
ठीक होना है तो कहीं और अब ना जाना
उनके हसीं सपनो में ही खो जाना
आएँगी जब पल्लू में अंगुली दबाकर
थाम कर हाथ कहना अब कभी जाओ न
आओ न आओ न
बधाई
उपासना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
बहुत सुन्दर ........
परवीन जी नमस्कार ! आपकी दिली दाद मिली ...अच्छा लगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया॥
विजय जी नमस्कार ! दाद के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
डॉ साहब हमेशा की तरह खूबसूरत ग़ज़ल .... जितनी तारीफ की जाये कम है !
बधाई !
वीनस भाई आप आए बहार आई...बड़े दिनों के बाद आया हूँ...आपको बहुत मिस किया॥लेकिन आपकी रचनाए पढ़ता रहा ....आपको बहुत बहुत धन्यवाद
तेरे बिन दिल का गुलशन वीराना लगता है,
मुरझाई चाहत की कली है आ भी जाओ ना॥
सारे ही भाव अच्छे लगे।
बधाई।
विजय निकोर
तुमने पुकारा और हम चले आए ... जान हथेली पर ले आए रे ... हो $$$$$
:)))))))
अच्छी ग़ज़ल है भाई
बधाई
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