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कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक

कटेगी सिर्फ़ दिलासों से ज़िंदगी कब तक।

रहेगी लब पे ग़रीबों के खामुशी कब तक॥

 

वरक़ पे आने को बेताब हो रहा है अब,

रहेगा हाशिये पे आम आदमी कब तक॥

 

न जाने कब ये बुराई का सिर क़लम कर दें,

सहेंगे लोग सियासत की गंदगी कब तक॥

 

मुझे डराएगा अब और कब तलक दुश्मन,

रहेगी खौफ़ के साये में हर खुशी कब तक॥

 

दमक रही है उजालों से शहर की बस्ती,

न जाने पहुंचेगी गाँवों में रौशनी कब तक॥

 

के माना दौरे-अमीरी है शानदार बहुत,

घुटन के दौर से निकलेगी मुफ़लिसी कब तक॥

 

ख़ुदा तलाश करो आएगा नज़र दिल में,

करोगे मील के पत्थर की बंदगी कब तक॥

 

शहीद होते रहें, मसअले का हल तो नहीं,

निभाई जाएगी सरहद पे दुश्मनी कब तक॥

 

निकल तो आयेगा “सूरज” भी सुब्ह होने तक,

अमीरे शहर बचाएगा चाँदनी कब तक॥

                       

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

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Comment by Ashok Kumar Raktale on December 17, 2012 at 9:47am

आदरणीय डॉक्टर साहब

                            सादर, बहुत सुन्दर गजल. बरबस मुझे एक गीत कि  पंक्ति याद आ रही है " वो सुबहा कभी तो आयेगी वो सुबह............" हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 11, 2012 at 1:33pm

मुझे डराएगा अब और कब तलक दुश्मन,

रहेगी खौफ़ के साये में हर खुशी कब तक॥

 बहुत खूब 

बधाई, सर जी 

काफिया रदीफ जाना 

सिखाते रहिये 

Comment by वीनस केसरी on December 11, 2012 at 12:32am

बेहद शानदार ग़ज़ल है भाई वाह वाह वा
क्या कहने ....

एक एक शेअर को कई कई बार पढ़ा और झूम झूम गया
शुरुआत के कई अशआर तो बेहद खूबसूरत हुए हैं
मज़ा आ गया
तहे दिल से दाद क़ुबूल करें

 

करोगे ईंट पत्थरों की बंदगी कब तक॥.... भाई, इस मिसरे पर नज़रे सानी फरमा लें

Comment by ajay sharma on December 10, 2012 at 10:52pm

शहीद होते रहें, मसअले का हल तो नहीं,

निभाई जाएगी सरहद पे दुश्मनी कब तक॥   wah wah wah 

Comment by नादिर ख़ान on December 10, 2012 at 3:48pm

शहीद होते रहें, मसअले का हल तो नहीं,

निभाई जाएगी सरहद पे दुश्मनी कब तक॥

 

निकल तो आयेगा “सूरज” भी सुब्ह होने तक,

अमीरे शहर बचाएगा चाँदनी कब तक॥

उम्दा रचना के लिए बधाई स्वीकार करे भाई सूर्या बाली जी ..

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 10, 2012 at 3:01pm

निकल तो आयेगा “सूरज” भी सुब्ह होने तक,

अमीरे शहर बचाएगा चाँदनी कब तक॥

बहुत खूब सर जी, बधाई 

         

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 10, 2012 at 2:32pm

वाह वाह वाह आदरणीय बाली साहब आपकी पोटली से निकली और ह्रदय के भीतर जा बसी आपकी यह ग़ज़ल, ढेरों-2 दाद कुबूल करें.

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