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न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते

कभी काँटे बिछाते हैं कभी पलकें बिछाते हैं॥

सयाने लोग हैं मतलब से ही रिश्ते बनाते हैं॥

हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,

तुम्हें जब देख लेते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं॥

वो धमकी रोज देता है के घर मेरा जला देगा॥

बड़ी मासूमियत से उसको हम माचिस थमाते हैं॥

इबादत के लिए उसकी हमारा दिल ही काफी है,

न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते हैं॥

ग़रीबों की गली में क़त्ल अरमानों का होता है,

जहां पर ख़्वाब पलने से ही पहले टूट जाते हैं॥

मुहब्बत के फसाने में वो ज़िंदा रहते हैं हरदम,

वफ़ा की राह में हँसकर जो अपना सर कटाते हैं॥

जगी आँखों से सपने देखते हैं जो यहाँ “सूरज”,

फ़लक पर चाँद तारों की तरह वो जगमगाते हैं॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

(स्वरचित और अप्रकाशित)

 

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Comment by Madan Mohan saxena on June 8, 2016 at 3:19pm

इबादत के लिए उसकी हमारा दिल ही काफी है,

न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते हैं॥

ग़रीबों की गली में क़त्ल अरमानों का होता है,

जहां पर ख़्वाब पलने से ही पहले टूट जाते हैं॥

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 23, 2013 at 8:19am

वाह! डॉ.सुर्याबाली 'सूरज'जी बहुत उम्दा गजल.सभी अशार एक से बढकर एक मगर कुछ तो बहुत ही कमाल है. दिली दाद कबूलें.

वो धमकी रोज देता है के घर मेरा जला देगा॥

बड़ी मासूमियत से उसको हम माचिस थमाते हैं॥

 

इबादत के लिए उसकी हमारा दिल ही काफी है,

न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते हैं॥

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on February 23, 2013 at 8:15am

आप सभी दोस्तों का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ कि आपने इतनी मोहब्बत से नवाज़ा और इस ग़ज़ल को दाद दी। आपकी मुहब्बत के बिना ये मुमकिन नहीं था....बस ऐसे ही दुवाएँ देते रहें । आप सभी फिर से बहुत बहुत शुक्रिया !!! सूरज 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 22, 2013 at 10:16pm
वाह डॉ. साब वाह हर एक शेर हृदय में बहुत गहरे तक उतर रहा है।मासूमियत,नसीहत,इबादत,मुहब्बत बहुत कुछ भर दिया आपने इस गजल में।बधाई।भूरिश: बधाई!
Comment by Arun Sri on February 22, 2013 at 12:20pm

हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,

तुम्हें जब देख लेते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं॥.......... वाह ! कितना प्रेम !!!!!!! पराकाष्ठा !!!!!!!

वो धमकी रोज देता है के घर मेरा जला देगा॥

बड़ी मासूमियत से उसको हम माचिस थमाते हैं॥........ कुर्बान इस मासूमियत पर आदरणीय ! वाह ! वाह !

Comment by Dr.Ajay Khare on February 22, 2013 at 12:08pm

वो धमकी रोज देता है के घर मेरा जला देगा॥

बड़ी मासूमियत से उसको हम माचिस थमाते हैं॥bahut umda line hai badhai suraj ji

 

Comment by वीनस केसरी on February 21, 2013 at 10:11pm

सयाने लोग हैं मतलब से ही रिश्ते बनाते हैं॥

.. sahi hai bhai

Comment by vijay nikore on February 21, 2013 at 10:38am

आदरणीय ’सूरज’ जी:

सारी गज़ल ही अच्छी है...

हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,

तुम्हें जब देख लेते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं॥

बधाई!

विजय निकोर

Comment by नादिर ख़ान on February 20, 2013 at 11:29pm

हमारे पास भी हैं ग़म उदासी बेबसी तंगी,
तुम्हें जब देख लेते हैं तो सब कुछ भूल जाते हैं॥

इबादत के लिए उसकी हमारा दिल ही काफी है,
न हम मंदिर बनाते हैं न हम मस्जिद बनाते हैं॥

डॉ. सूर्या बाली जी बहुत उम्दा,शानदार, लाजवाब गज़ल....

Comment by बृजेश नीरज on February 20, 2013 at 10:09pm

कभी काँटे बिछाते हैं कभी पलकें बिछाते हैं॥

सयाने लोग हैं मतलब से ही रिश्ते बनाते हैं॥

शुरूआत ही इतनी खूबसूरत बात से की आपने। बहुत ही सुन्दर।

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