For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय अम्बरीश सर के मार्गदर्शन से दोहा गीत को
दोहा-रोला गीत में परिवर्तित कर नए स्वरुप में प्रस्तुत कर रहा हूँ

सब ऋतुओं से है भला, मोहक परम उदंत
"आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत"

अति जाड़े का अंत, माघ शुक्ला जब आये,
नव दुर्गा का ध्यान, करें ऋतुराज सुहाये,
मना रहे सब संत, जन्म उत्सव वागीश्वरि,
पंचम दिवस बसंत, पूजिये मिल सर्वेश्वरि,
छटा निराली सोहती, प्रेम मग्न हर कंत.
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत.

सब ऋतुओं से है भला……..

चलती शीतल मंद , पवन भी दक्षिण-उत्तर,
प्रखर भये हैं चंद, चले उत्तर में दिनकर,
छोड़ें तीक्ष्ण अनंग , प्रीत शर मनुज ह्रदय में,
सजनी साजन संग , काम रति शोभित उर में,
नवल धरा अरु नव गगन , नव रव रचते छंद.
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत.

सब ऋतुओं से है भला……

गावें गीत विहंग, हुई हर डाली पुष्पित
रोमांचित हर अंग, हुआ हर मानव विस्मित
सुरमय दिशा दिगंत, डाल पर कोयल कूके
सुने मुग्ध हो कंत, पीर इक पल में फूंके
तरुण धरा हरितावरण, विस्तृत दृश्य अनंत
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत

सब ऋतुओं से है भला……

मुख मुस्काये मंद, रखे पग वो पंकज में
स्वर लगते मकरंद, धारती वीणा कर में
ध्यावें जिनको संत, शारदे वो कहलाती
है भण्डार अनंत, लुटाती विद्यादाती
कंत निहारें ये छटा , करें साधना संत
आराधन रस का लिए ये ऋतुराज बसंत

सब ऋतुओं से है भला……

मादक उड़ती गंध, खिली उपवन अमराई
पीली चादर अंग, धरे वसुधा तरुणाई
बिखरे नव नव रंग, पुष्प सा लगता जीवन
देव लोक भी दंग, देख धरती का यौवन
सुरभित सुमनावलि सदृश, नूतन किसलय संग
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत

सब ऋतुओं से है भला……

आया नवल बसंत, हुआ जीवित अब कण कण
उर उर धवल बसंत, प्रेममय हर इक तन मन
शोभित दिशा दिगंत, न दिखती कोई बाधा
धरती गगन अनंत, कृष्णमय होती राधा
अमृत की धारा भरे, आया आज बसंत
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत

सब ऋतुओं से है भला……

सजी थाल में भंग, ध्यान होवे शंकर का
डमरू ताल मृदंग, नृत्य हो अभ्यंकर का
शुद्ध श्वेत है गंग, हिमालय से है निकली
मनु मन होय मलंग, बने बहुरंगी तितली
गली गली में हो रही, होली की हुडदंग
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत

सब ऋतुओं से है भला……

संदीप पटेल “दीप”

Views: 965

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 11:03am
आदरणीय विजय सर जी सादर प्रणाम 
आपका स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार सर जी 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 11:00am
आदरणीय गणेश बागी सर जी सादर प्रणाम 
आपकी सराहना पाकर लेखन सफल हुआ सर जी 
ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये 
आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 10:59am
आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम 
आपकी इस तरह प्रतिक्रिया पा कर लेखन सफल हुआ सा जान पड़ता है 
आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस उत्साहवर्धन हेतु 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 10:58am
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम 
इस उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार 
स्नेह और आशीष अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 10:57am
आदरणीय अजय सर जी सादर प्रणाम 
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 
  
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 10:56am

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम 

आपकी सरहना सर आँखों 
इस उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 10:55am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी  सादर प्रणाम 

आपकी इस तरह सराहना पाकर मैं धन्य हुआ 
किसी गुरु के अपने शिष्य के प्रति ये उदगार उसके शिष्य को शिखर में ले जाते हैं

आपने हर स्थान पे मेरा मार्गदर्शन किया है 
चाहे वो गीत हो ग़ज़ल हो अतुकांत रचना हो या के छंद
आपने जो सीख दी उसके लिए मैं आपका सदैव से आभारी हूँ सर जी 
ये स्नेह और आशीष की छाया यूँ ही बनाये रखिये 
Comment by vijay nikore on February 14, 2013 at 9:23am

बिखरे नव नव रंग, पुष्प सा लगता जीवन
देव लोक भी दंग, देख धरती का यौवन
सुरभित सुमनावलि सदृश, नूतन किसलय संग
आराधन रस का लिए, ये ऋतुराज बसंत
 

इतनी मनोहारी प्रस्तुति के लिए साधुवाद!

विजय निकोर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 13, 2013 at 9:12pm

आहा !! भाई संदीप जी, बहुत सफल है यह प्रयोग , बहुत ही अच्छी रचना बन पड़ी है, ख्याल बहुत ही उम्दा , बधाई स्वीकार करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 13, 2013 at 8:17pm

बिलकुल अभिनव, सुन्दर, मनमोहक, बहुत प्यारी रचना ....

मन मुग्ध है हर बंद के कथ्य शिल्प, लय , संयोजन पर.

बहुत बहुत बधाई , संदीप जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service