मिला राज्य सम्मान- (दोहे)
-लक्ष्मण लडीवाला
तामस सात्विक राजसी, तीनो ही अभिमान,
रावण और कुम्भ करण, तामस राजस जान।
सात्विक मन से आदमी, करे प्रभु गुणगान,
देख विभीषण को जरा, वे इसके प्रतिमान ।
कुम्भ करण सोता रहा, दिल में भरा प्रमाद,
अहंकार था तामसी, जीवन भर अवसाद ।
राजसी अहंकार वश, आजाये अभिमान,
अभिमानी रावण बना,रह न सका सम्मान।
रावन वीर महान था, महा भक्त गुणवान,
राजसी अहंकार वश, बच न सका अभिमान।
सात्विक अहंकारी पर, प्रभु करते है अभिमान,
सात्विक मन विभीषण को,मिला राज्य सम्मान।
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Comment
आपको दोहे के भाव भागए, आये, यह जानकार हर्ष हुआ, हार्दिक आभार स्वीकारे विनीता शुक्ला जी
आपको दोहे पसंद आये, यह नेरा सौभग्य है, हार्दिक आभार मंजरी पाण्डेय जी
सुन्दर, सात्विक भावों से सजे दोहे. बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय रक्ताले जी आभार। आपलोग रचना देख लेते हैं . यही बहुत है।
लक्ष्मण प्रसाद जी दोहे बहुत अच्छे लगे अति सुंदर बधाई।
बहुत ही उन्नत कोटि के भाव हैं दोहों में हार्दिक बधाई आदरणीय
हार्दिक अबह्र डॉ अजय खरे जी, आपके अंतर्मन को रचना छू जाय यह मेरा सौभाग्य है । दिल से बधाई स्वीकारे
laxman ji sadar pranam aapke lekhan ka me kayal hu aapki lekhni se jo bhi nikalta hai antarman mai bhid jata hai badhai
पुनः दिल से हार्दिक आभार श्री अशोक रक्ताले जी
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