राज की बात हम तलक ही रहे
ये मुलाक़ात हम तलक ही रहे ।
कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।
उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे ।
डर है तुझको बहा न ले जाये
ऐसी बरसात हम तलक ही रहे ।
इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।
(इस्बात - प्रमाण/सुबूत)
Comment
शुक्रिया आ. Ashok Kumar Raktale जी |
शुक्रिया आ. Dr Mohan lal जी |
वाह! बढिया गजल भाई आशीष जी बधाई स्वीकारें.
उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे आपने बहुत अच्छे अशरार आप जी ने कहे
आ. राजेश कुमारी जी, आ. मीना पाठक जी बहुत बहुत शुक्रिया |
इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।.......... वाह भई वाह ! मज़ा आ गया ! जय हो !
शुक्रिया वीनस भाई हौसला-अफजाई के लिये |
एक ही मिसरे में 'मेरे' और 'हमारे' प्रयुक्त नहीं करना चाह रहा था लेकिन कुछ और बन नहीं पड़ रहा था लेकिन आपने तो समस्या ही दूर कर दी | बहुत-बहुत शुक्रिया |
/ * भाई कम लिखें मगर ऐसा ही लिखें ...
या इससे अच्छा :))))) */
वीनस भाई आपके इस सुझाव का अक्षरश: पालन किया जायेगा | :) :)
ग़ज़ल पसंदगी के लिए शुक्रिया वेदिका जी ।
वाह बहुत खूब ... बधाई इस लाजवाब गज़ल के लिए
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