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उफ्फ ये स्वप्न!!

हृदय विदारक

कैसे जन्मा

सुषुप्त मन में ?

रेंगती संवेदनाएं  

कंपकपाएँ

जड़ जमाएं  

भयभीत मन में

अतीत है या

भावी  दर्पण

उथल पुथल है

मन उलझन में

गर वर्तमान  है 

बन के  प्रश्न

 खड़ा हुआ 

नेपथ्य तम में 

क्या स्वप्न जो  

 नयनों में पले

वो भी जले   

आतंकी अगन में  

क्यों  याद नही

रंग सिन्दूरी    

बस रक्त रंग ही

घूमता ज़हन में

जो घुला    मेरी  

 रग रग में

क्या वही

 जन्मता

सुषुप्त मन में?

***************** 

(एक बार कश्मीर में आतंक के साये में पली बालिकाओं से बात करने का मौका मिला उनकी बातों से प्रेरित होकर उस वक्त इस कविता का जन्म हुआ था  जो आज मेरी एक डायरी में मिली तो आप सब से साझा कर रही हूँ )

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Comment by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 12:29pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी:!!

इस मार्मिक रचना पर प्रणाम सहित हार्दिक बधाई .................. 

Comment by vijay nikore on February 19, 2013 at 12:15pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी:

 

इतनी अच्छी मार्मैक रचना के लिए साधुवाद!

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:02pm

हार्दिक आभार आपका डॉ अजय जी रचना के मर्म ने आपको छुआ

Comment by Dr.Ajay Khare on February 19, 2013 at 11:58am

Rajesh Kumari mam man chooti hui rachana aap sadev hi bahut badia likhti hai aap badhai ki haqdaar hai

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