बसंत के मौसम को समर्पित एक गीत
अनछुए पल
मुट्ठियों में घेर कर
जब उड़ाए
लाल मौसम हो गया
नींद बिछड़ी
ख्वाब से
तो यक ब यक
बड़बड़ाने सी लगीं
खामोशियाँ .....
टांग कर दीवार पर
आँखों को अब
भीड़ में चलने लगीं
तन्हाइयां ....
मौन शब्दों के अधर
जब हो गए
और भी वाचाल
मौसम हो गया
अनछुए पल
मुट्ठियों में घेर कर
महकते अहसास में
लिपटे हुए
पल यूँ सिमटे
मखमली सी
छाँव में
चन्दनों के जंगलों
से ज्यों हवा
घूम कर लौटी हो
अपने गाँव में
गीत जब मन की
नदी से बह चले
खुद-ब-खुद लय ताल
मौसम हो गया
अनछुए पल
मुट्ठियों में घेर कर
Comment
आदरणीया सीमा जी:
सारा गीत ही इतना ज़ोरदार है कि मैं इस
अनिवर्चनीय प्रसन्नता को कहाँ से शूरू करूँ!
पंक्तियों के कभी इस समूह को और कभी
उस समूह को बार- बार पढ़ा, और फिर
उन्हें गुनगुनाने से और भी आनन्द आया!
सादर,
विजय निकोर
राजेश जी आपकी प्रतिक्रिया भी आपकी रचनाओं के समान ही खूबसूरत और मधुर है .........आप जैसे गीतकार का अनुमोदन पाकर बहुत अच्छा लगा ...आभार
आदरणीय लक्षमण जी आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिकिया से मन प्रसन्न हो गया ..पर आप आदरणीय लिखने का अधिकार मेरे पास ही रहने दीजिये ..........
मीना जी , राम शिरोमणि जी , वेदिका जी और आरती जी हार्दिक आभार आप सभी का कि आप लोगों ने गीत को स्नेह दिया
प्रिय राजेश जी
आप का अधिकार है ये, पूरे सम्मान के साथ आपकी बात का अनुमोदन करती हूँ ...और बस इस समय तो आपके इस प्रेम में डूबी हुयी हूँ इसलिए और कुछ नहीं कहूंगी .ईश्वर मुझे बार-बार इस तरह के मौके दे यही मनाती हूँ :-))
आदरणीय नादिर खान जी एवं अरुण आप लोगों की प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया अदा करती हूँ
हार्दिक अभिनन्दन संदीप आपका ......
आपका विचार मुट्ठियों में घेरने को स्वीकार नहीं कर पा रहा है ....मैं आपकी बात का विरोध किये बिना बस इतना कहूंगी कि प्रथमतयः यही पंक्तियाँ मन में आयीं और रचना का आधार बनी इसलिए इसे रखा ...और कई विकल्प बाद में सोचे पर उतना मन को छू नहीं सके .....बस इसलिए यही लिखा ....अगर कोई इससे बेहतर शब्द लगा तो निश्चित ही इसे बदल दूंगी ...खुश रहिये शुभकामनाएं
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ही इतनी सुंदर कि मन छोड़ना भी चाहे तो मुट्ठियां खुलती ही नहीं और सारा आकाश स्निग्ध लाल हो जाता है एक मखमली आभा के साथ जो आंखों को चुभती नहीं बल्कि शीतल कर जाती है
सुन्दर भाव, सुन्दर प्रवाह, बहक गया मन, महक़ गया तन,
देख आपका जतन मन करे ये आपको नमन
आदरणीया सीमा जी, स्वीकारे बधाई ढेर सारी -
महकते अहसास में लिपटे हुए
पल यूँ सिमटे मखमली सी
छाँव में
चन्दनों के जंगलों से ज्यों हवा
घूम कर लौटी हो अपने
गाँव में
गीत जब मन की नदी से बह चले
खुद-ब-खुद लय ताल
मौसम हो गया
गीत जब मन की
नदी से बह चले
खुद-ब-खुद लय ताल
मौसम हो गया
बहुत खूब सीमा जी ,बधाई स्वीकारें
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