For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब उडाये लाल मौसम हो गया///गीत

बसंत के मौसम को समर्पित एक गीत 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

जब उड़ाए

लाल मौसम हो गया

नींद बिछड़ी

ख्वाब से

तो यक ब यक 

बड़बड़ाने सी लगीं 

खामोशियाँ .....

  टांग कर दीवार पर 

आँखों को अब 

भीड़ में चलने लगीं 

तन्हाइयां ....

मौन शब्दों के अधर 

जब हो गए   

और भी वाचाल 

मौसम हो गया

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर 

महकते अहसास में 

लिपटे हुए

पल यूँ सिमटे 

मखमली सी 

छाँव में 

चन्दनों के जंगलों 

से ज्यों हवा 

घूम कर लौटी हो 

अपने गाँव में 

गीत जब मन की

नदी से बह चले  

खुद-ब-खुद लय ताल

मौसम हो गया 

अनछुए पल 

मुट्ठियों में घेर कर

 

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 21, 2013 at 10:17am

आदरणीया सीमा जी:

 

सारा गीत ही इतना ज़ोरदार है कि मैं इस

अनिवर्चनीय प्रसन्नता को कहाँ से शूरू करूँ!

 

पंक्तियों के कभी इस समूह को और कभी

उस समूह को बार- बार पढ़ा, और फिर

उन्हें गुनगुनाने से और भी आनन्द आया!

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:26pm

राजेश जी आपकी प्रतिक्रिया भी आपकी रचनाओं के समान ही खूबसूरत और मधुर है .........आप जैसे गीतकार का अनुमोदन पाकर बहुत अच्छा लगा ...आभार 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:23pm

आदरणीय लक्षमण जी आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिकिया से मन प्रसन्न हो गया ..पर आप आदरणीय लिखने का अधिकार मेरे पास ही रहने दीजिये ..........

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:21pm

मीना जी , राम शिरोमणि जी , वेदिका जी  और आरती जी हार्दिक आभार आप सभी का कि आप लोगों ने गीत को स्नेह दिया 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 9:19pm

प्रिय राजेश जी 

आप का अधिकार है ये, पूरे सम्मान के साथ आपकी बात का अनुमोदन करती हूँ  ...और बस इस समय तो आपके इस प्रेम में डूबी हुयी हूँ इसलिए और कुछ नहीं कहूंगी .ईश्वर मुझे बार-बार इस तरह के मौके दे यही मनाती हूँ :-))

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 2:50pm

आदरणीय नादिर खान जी एवं अरुण आप लोगों की प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया अदा करती हूँ 

Comment by seema agrawal on February 20, 2013 at 2:41pm

हार्दिक अभिनन्दन संदीप आपका ......

आपका विचार मुट्ठियों में घेरने को स्वीकार नहीं कर पा रहा है ....मैं आपकी बात का विरोध किये बिना बस इतना कहूंगी कि प्रथमतयः यही पंक्तियाँ मन में आयीं और रचना का आधार बनी इसलिए इसे रखा ...और कई विकल्प बाद में सोचे पर उतना मन को छू नहीं सके .....बस इसलिए यही लिखा ....अगर कोई इससे बेहतर शब्द लगा तो निश्चित ही इसे बदल दूंगी ...खुश रहिये शुभकामनाएं 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 20, 2013 at 2:19pm

बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति ही इतनी सुंदर कि मन छोड़ना भी चाहे तो मुट्ठियां खुलती ही नहीं और सारा आकाश स्निग्‍ध लाल हो जाता है एक मखमली आभा के साथ जो आंखों को चुभती नहीं बल्कि शीतल कर जाती है

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 20, 2013 at 1:25pm

सुन्दर भाव, सुन्दर प्रवाह, बहक गया मन, महक़ गया तन, 

         देख आपका जतन मन करे ये आपको नमन 

       आदरणीया सीमा जी, स्वीकारे बधाई ढेर सारी - 

                महकते अहसास में लिपटे हुए

                  पल यूँ सिमटे मखमली सी 

                              छाँव में 

                चन्दनों के जंगलों से ज्यों हवा 

                    घूम कर लौटी हो अपने 

                              गाँव में 

              गीत जब मन की नदी से बह चले  

                     खुद-ब-खुद लय ताल

                          मौसम हो गया 

Comment by Aarti Sharma on February 19, 2013 at 8:30pm

गीत जब मन की

नदी से बह चले  

खुद-ब-खुद लय ताल

मौसम हो गया 

बहुत खूब सीमा  जी ,बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
12 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
12 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service