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आज यह कालजयी गीत ओ बी ओ पर प्रस्तुत कर आपने सही अर्थों में एक सशक्त रचनाकार को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है आदरणीय श्री | इससे कतिपय अनभिज्ञ सदस्य पंडित जी के लेखन से भी परिचित हो सकेंगे । इस और अन्य ओज पूर्ण गीतों को पंडित जी की प्रभावपूर्ण शैली में सुनना एक अनुभव होता था । बहुत साधुवाद अब यह गीत ओ बी ओ के दस्तावेज में भी दर्ज हो गया !!
परम श्रद्धेय श्री कृष्ण तिवारी जी को भाव भीनी श्रद्धांजलि | ऐसे कालजयी रचनाकार का जाना सम्पूर्ण जगत की साहित्यिक क्षति है
जानकारी उपलब्ध कराने के लिए श्री अभिनव अरुण जी हार्दिक आभार स्वीकारे
भीलों ने बाँट लिए वन उनका कालजयी नवगीत पढने को मिला, हार्दिक आभार श्री सौरभ जी
एक अपूरणीय क्षति का दुखद समाचार मन को कचोट गया. आह निकल गयी.
परमश्रद्धेय श्रीकृष्ण तिवारी जी को कई-कई दफ़े पढ़ा है हम लोगों ने. साहित्य के क्षेत्र में माँ शारदा के पुत्र को अश्रुपूरित नमन.
भीलों ने बाँट लिए वन उनका कालजयी नवगीत था. इस मंच के सुधी पाठकों केलिए प्रस्तुत कर रहा हूँ -
भीलों नें बाँट लिये वन
राजा को खबर तक नहीं.. .
पाप चढ़ा राजा के सिर
दूध की नदी हुई जहर
गाँव, नगर धूप की तरह
फैल गयी यह नयी खबर
रानी हो गयी बदचलन
राजा को खबर तक नहीं.. .
कच्चा मन राजकुँवर का
बे-लगाम इस कदर हुआ
आवारा छोरों का संग
रोज खेलने लगा जुआ
हार गया दाँव पर बहन
राजा को खबर तक नहीं
उल्टे मुँह हवा हो गयी
मरा हुआ साँप जी गया
सूख गये ताल-पोखरे
बादल को सूर्य पी गया
पानी बिन मर गये हिरन
राजा को खबर तक नहीं.. .
एक रात काल देवता
परजा को स्वप्न दे गये
राजमहल खण्डहर हुआ
छत्र-मुकुट चोर ले गये
सिंहासन का हुआ हरण
राजा को खबर तक नहीं.. .
सादर श्रद्धांजलि और अश्रुपूरित नमन उस अद्भुत शब्द चितेरे को .. .
हिंदी साहित्य विशेष कर नवगीत के क्षेत्र में गत पांच दशक से सक्रिय पंडित श्रीकृष्ण तिवारी का विगत २ ८ अप्रैल २ ० १ ३ को निधन हो गया वे ७ ४ वर्ष के थे और कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे । सम्पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ काशी के मणिकर्णिका घाट पर २ ९ अप्रैल को हुई अंत्येष्टि में शहर के साहित्यकार और उनके चाहने वाले बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।
वो हम बनारस के लिखने पढने वालो के सच्चे अर्थों में अगुआ थे । काशी के इस प्रतिनिधि का जाना बहुत बड़ी क्षति है । पंडित जी के साथ कई कई आयोजनों में , मंचों , गोष्ठियों में और आकाशवाणी में बिताये पल बार बार कौंध - कचोट - स्मरण आ रहे हैं , मन व्यथित है !
उनकी रचनाएँ कालजयी है .."भीलों ने बाँट लिए वन , राजा को खबर तक नहीं " अपातकाल के दौरान चर्चित गीत था जिसने उन्हें बड़ी प्रसिद्धि दी । अभी कुछ माह पहले ही वो काव्य पाठ के लिए भारत सरकार की और से लन्दन भी गए थे और हिंदी गौरव सम्मान तो कुछ दिन पहले राज्य सरकार की और से मिला था ।
विनम्र श्रद्धांजलि एक महान साहित्य सेवी को !!!
अपने घर में ही आखिर प्रसादजी कितने दिनों तक बेठौर रहते ! शहर के लहुराबीर पर स्थित ऐतिहासिक क्वींस कॉलेज ने मान दिया. वैसे उस कॉलेज से भी जिम्मेदार व्यवस्था कम मज़ाक नहीं कर रही है.
साहित्यिक गतिविधियों की कभी धुरी रहा यह केन्द्र अपने बेलौसपन में ठहाके तो लगाता है, मग़र अब कहकहे आँखों की कोर के अनायास भीग जाने का सबब ज्यादा बनते हैं.
भाई अरुण अभिनवजी, चाहे जो हो यह शहर जिजीविषा से भरा हुआ है. शहर की साहित्यिक गतिविधियों पर ऐसे ही सूचनाएँ साझा करते रहें, प्रतीक्षा रहेगी.
रपट के लिये हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीयअरुण जी जी सांगोपांग रपट काशीनामा रुचिकर लगा आप काशी के सच्चे संदेशवाहक हो गए।बधाई।
बहुत शुक्रिया आदरणीया डा. प्राची जी , रपट आपको रुचिकर लगी !
काशी नगर में महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की प्रतिमा के अनावरण की सुन्दर रिपोर्ट प्रस्तुत की है आदरणीय अरुण जी.
हार्दिक शुभकामनाएं
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