जिसने खुद को ही, ज़माने से छुपा रखा है |
जाने किस शख्स ने नाम उसका, खुदा रखा है ||
सब बहाने से उसे, याद किया करते हैं |
दिल में दुनियाँ के, अजाब खौफ बिठा रखा है ||
हाथ तकदीर बनाने के ही, काम आते हैं |
क्या हथेली की लकीरों में, भला रखा है ||
खूब देता है कभी, छीन कभी लेता है |
उसने दुनियाँ का, तमाशा सा बना रखा है ||
खून का नाम नहीं, दिल में, मगर हिम्मत देखो |
इसने हर ज़हन में, तूफ़ान उठा रखा है ||
खूब बर्दाश्त की, कुव्वत से, नवाज़ा है जहाँ |
सबका जीना यहाँ आसान बना रखा है ||
अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |
दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है ||
किसी यत्न या बहाने से, खुद को समझाओ |
तुम्हारे दिल ने ‘शशि’ शोर मचा रखा है ||
Comment
सभी अशआर अच्छे लगें , बहुत बहुत शुभकामनायें ।
जिसने खुद को ही, ज़माने से छुपा रखा है |
जाने किस शख्स ने नाम उसका, खुदा रखा है ||
अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |
दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है ||बहुत बढ़िया ये दोनों शेर तो बहुत अच्छे लगे दाद कबूल करें
अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |
दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है ||
बहुत सुन्दर!
मेहरा जी,
दिल को झ्झोडती है, तुमाहरी रचना
अपनी नाकाम तमन्ना के, दफ़न की खातिर |
दिल के कोने में ही, शमशान बना रखा है || -बहुत अच्छा शेर है
वाह वाह वाह-
ये हुई ना बात-बढ़िया ललकार -
छुप छुप कर करता रहे, हरदम तू खिलवाड़ |
जिसको चाहे चीर दे, चाहे जिसको फाड़ |
चाहे जिसको फाड़, चीर का हरण कराता |
बढ़ा बढ़ा के चीर, बड़ा अपना बन जाता |
तू तो है रे धूर्त, चलाता रहता चक्कर |
हर दम रहे अमूर्त, कलयुगे क्यूँ छुप छुप कर ||
mehra ji bahut khoob rachna
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