एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें
उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |
शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |
गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |
आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,
जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |
मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |
अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |
मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित
Comment
शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |वाह वाह वीनस जी शानदार ग़ज़ल कही है और इस शेर पर तो कुर्बान होने को जी चाहता है ढेरों दाद कबूल फरमाएं
सुबह सुबह एक खुबसूरत सी ग़ज़ल राह रोके खड़ी हो गई, आइने को बिम्ब बना कई कई शायरों ने बहुत कुछ कहा है, किन्तु एक अलग ख्यालात को लेकर आई यह ग़ज़ल बरबस ध्यान खींचती है, मतला बेहतरीन, पहला शेर जहाँ यह साफ़ साफ़ बयां कर रहा है की सच आखिर सच ही है जिसे पराजित करना आसान नहीं है वही दूसरा शेर झूठे दिखावे पर तंज करता लग रहा है, उसके बाद का शेर साफ़ है कि दुसरे के घर में झाकने से पहले अपना घर देख लो, कहने का अंदाज बेहद प्यारा, आहा !!अंतिम शेर पर क्या कहना, उस्तादों वाली बात, अंतिम तीन अशआर देख लें, कही तकाबुले रदीफ़ दोष तो नहीं !!
बहरहाल मुझे एक बार और आनंद लेने दीजिये और आप बधाई स्वीकार कीजिये ।
@संदीप भाई बहुत बहुत शुक्रिया
ग़ज़ल पसंद आई और इसे आपसे दाद मिली है तो अशआर और चमक रहे हैं
लाजवाब प्रस्तुति वीनस जी. आपकी इस ग़ज़ल में नज़्म के रंग भी छलकते हुए दीख रहे हैं! आख़िरी शे'र सबसे बेहतरीन लगा! दाद क़ुबूल फरमाएं.. :)
Dr.Prachi Singh
आदरणीया,
अभी तो देने कई इम्तेहान बाकी है ...
अरुन शर्मा "अनन्त" जी आपकी नवाजिश है, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जान कर बेहद खुशी हुई
आशीष नैथानी 'सलिल' भाई धन्यवाद, आभार
लाजवाब ग़ज़ल है वीनस जी
शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |.............आप गज़ब का लिखते हैं आदरणीय वीनस जी. वाह शब्द भी कम है ऐसे शेर के लिए तो ..
हार्दिक दाद क़ुबूल करें
सादर.
वीनस भाई हमेशा की तरह फिर से आपके खजाने से निकली शानदार ग़ज़ल, सभी के सभी अशआर शानदार हैं. खास कर इन दो शे'रों पर कुछ ज्यादा ही दाद कुबूलें.
गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |
अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online