जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है |
तब तो समझूं, मुन्तज़िर हूँ, मुन्तज़र मेरा भी है |
जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |
शहर में दंगे की ज़द में एक घर मेरा भी है |
घरघराती आरियों में दब गई थी हर सदा,
कुछ कबूतर कह रहे थे,,, पर शज़र मेरा भी है |
आखिरश नंगी हकीकत से हुआ है सामना,
आइना खुश था कि पत्थर पे असर मेरा भी है |
आसमां वालों ! मिलेगा जा-ब-जा तुमको जवाब,
तुम से टकराना पड़ा तो, बालोपर मेरा भी है |
इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं,
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है |
वक्त तो ये चाहता था, झुक के मैं उससे कहूँ,
''आसमां इक चाहिए मुझको कि सर मेरा भी है |''
तज्रिबा ही काम आया ज़िन्दगी के मोड पर,
पर मेरे सब दोस्त कहते हैं हुनर मेरा भी है |
रहगुज़र मंजिल हुई, अब मंजिलें हैं रहगुज़र,
वो जो सबका राहबर है राहबर मेरा भी है |
खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है |
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Comment
सौरभ जी,
हार्दिक आभार
वीनस भाई.. . क्या ग़ज़ल हुई है.
अभी थोड़ी देर पहले डॉक्टर साहब को वाह-वाह कर आया हूँ.. . अब आपको हर शेर पर वाह-वाह कह रहा हूँ.. .
बार बार बधाई.. हर शेर पर बधाई.. . मगर इन शेरों पर एक्स्ट्रा.. खूब-खूब-खूब बधाई लें -
घरघराती आरियों में दब गई थी हर सदा,
कुछ कबूतर कह रहे थे,,, पर शज़र मेरा भी है |
इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं,
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है |
खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है |
इस ग़ज़ल को सामने बैठ कर सुनने का मज़ा अभी पढ़ने पर फिर से आ रहा है.. .
आप सभी का हार्दिक आभार
स्नेह बनाये रखें ....
तज्रिबा ही काम आया ज़िन्दगी के मोड पर,
पर मेरे सब दोस्त कहते हैं हुनर मेरा भी है |माननीय श्री वीनस केसरी जी, सुप्रभात! सादर प्रणाम!!दूरियों और कशिश को झकझोर देने वाली गजल..वाह.वाह..! बहुत.बहुत बधाई
वाह वाह आदरणीय वीनस सर जी ............वाह
क्या बात है बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है
हर इक अशआर उम्दा है अपने आप में नगीना है
इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए साहब
जय हो
क्या बात है वीनस भाई इक ही ज़मीन पर दोनों ने एक साथ ही ग़ज़ल पोस्ट की ....बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है...खासकर ये शेर बहुत उम्दा हुआ है:
इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं,
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है |...
दिली दाद कुबूल करें !
जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |
शहर में दंगे की ज़द में एक घर मेरा भी है |
खूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों दाद...................
वक्त तो ये चाहता था, झुक के मैं उससे कहूँ,
''आसमां इक चाहिए मुझको कि सर मेरा भी है |'' खूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों दाद
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