नई कविता जो आज रात पुरानी हो गई
मैं चाहता था
ख़्वाब मखमली हों और उनमें परियां आएँ
सूरज की तरह किस्मत हर दिन चमकदार हो
और जब सलोना चाँद रास्ता भटक जाए,
तो तारों से राह पूछने में उसे शर्म न लगे
ये भी चाहा कि,
मैं पूरी शिद्दत से किसी को पुकारूं
और वो मुड कर मुझे देख कर मुस्कुराए
हम सुलझते सुलझते, थोडा सा फिर उलझ जाएँ
प्यार करते करते लड़ पड़ें
और लड़ते लड़ते प्यार करना सीखें
चाहता था मैं जान लूँ
जब टकराती हैं नज़र से नज़र
तो वो हादिसा हसीन क्यों होता है
सीखूं गणित के वो दांव पेंच
जिसमें दो और दो चार की जगह
कुछ और होने लगता है
जिंदगी ऊन के गोले सी नर्म हो
वक्त जब स्वेटर बुने तो उसका डिजाइन हमेशा नया रहे
ऐसी ही कुछ और चाहतें,
जिसको लोग हसीन कहते थे
चाहता था सारे ख़्वाब पूरे हो जाएँ
और हुए
ख़्वाब में परियां आईं
और किस्मत सूरज के जैसी चमकदार हो गई
हर प्रश्न का उत्तर मिल गया
मगर साथ ही मिले कुछ जवाब
जिनके सवाल नदारद थे
जाने किसने पूछा था ...
मगर जब जवाब हैं तो सवाल भी रहे होंगे ...
उन जवाबों के कारण मैंने यह जान लिया कि,
चाँद रोटी भी होता है
ख़्वाब में परियां केवल तब ही आती हैं,
जब हम भर पेट खाना खा कर सोए हों
पटरियों पर बिखरे प्लास्टिक के टुकड़े और कागज़ की कतरनें
चावल के वो दाने हैं जिनको चिड़िया नहीं चुग पाती
मैंने यह भी जाना
कारखाने इंसानों को लील कर टीवी और फ्रिज बना रहे हैं
रोटी कपडा मकान के सारे वादे झूठे थे
रजिस्टर के पन्ने में एक के आगे अनंत गोले हैं
और अनाज भरे बोरे गोदामों में सड़ गये हैं
आदमी खरीदे जा रहे हैं पुरूस्कार बिकते हैं
जो नहीं बिकना चाहता उसका भाव रद्दी से भी कम हो जाता है
और मैंने यह भी जाना
बाज़ार में मिलावटी खून सस्ता मिलता है
रिश्ते कैडबरी चाकलेट की तरह मीठे नहीं रह गये
जीने का हक सिर्फ कुछ लोगों को है
जो यह भी तय करते हैं किसे जीने देंगे और किसे ...
मैं अब भी
ख़्वाब में परियां को बुलाना चाहता हूँ
मगर अब मुझे नींद नहीं आती
- वीनस
Comment
उद्विग्न मन विसंगतियाँ का परिणाम होता है. लेकिन जब उद्विग्नता आत्म-विश्लेषण की पराकाष्ठा हो तो प्रस्तुतिकरण के बिम्ब एक अलग ही संदर्भ में प्रस्तुत होते हैं. प्रस्तुत रचना की सार्थकता इसी तथ्य को प्रतिस्थापित करने के कारण है.
अपनी चिर-परिचित शैली अलग आपने कुछ कहा है वीनस भाई, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि यह बनाये रखना कि संप्रेषणीयता इस नई विधा में भी कमाल की है.जो आपकी रचनाओं और ग़ज़लों की वशिष्टता हुआ करती है.
इस सार्थक प्रस्तुतिकरण के लिए भूरि-भूरि बधाई तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ..
रजिस्टर के पन्ने में एक के आगे अनंत गोले हैं
और अनाज भरे बोरे गोदामों में सड़ गये हैं
आदमी खरीदे जा रहे हैं पुरूस्कार बिकते हैं
जो नहीं बिकना चाहता उसका भाव रद्दी से भी कम हो जाता है ..............वाह! बहुत खूब!
सुन्दर रचना आदरणीय वीनस जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय वीनस केसरी जी,लाजवाब,शानदार . यथार्त से ओत प्रोत
इस शानदार, जानदार एवं दमदार रचना के लिए ढेरों बधाई
आदरणीय वीनस जी,नमस्कार !
आपकी कविता अच्छी लगी .....जो कल्पनाओं के कोमल धरातल पर चलते -चलते अचानक यथार्थ के कठोर मार्ग पर आ खड़ी होती है ......सुन्दर प्रस्तुति ..........बधाई हो।
मैं अब भी
ख़्वाब में परियां को बुलाना चाहता हूँ
मगर अब मुझे नींद नहीं आती
अर्थपूर्ण रचना ......हार्दिक बधाई
आदरणीय वीनस जी:
और मैंने यह भी जाना बाज़ार में मिलावटी खून सस्ता मिलता है रिश्ते कैडबरी चाकलेट की तरह मीठे नहीं रह गये जीने का हक सिर्फ कुछ लोगों को है जो यह भी तय करते हैं किसे जीने देंगे और किसे ...
//मैं अब भी
ख़्वाब में परियां को बुलाना चाहता हूँ
मगर अब मुझे नींद नहीं आती//
एक बहुत ही खूबसूरत रचना के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
चाँद रोटी भी होता है
ख़्वाब में परियां केवल तब ही आती हैं,
जब हम भर पेट खाना खा कर सोए हों
पटरियों पर बिखरे प्लास्टिक के टुकड़े और कागज़ की कतरनें
चावल के वो दाने हैं जिनको चिड़िया नहीं चुग पाती.............
अनाज भरे बोरे गोदामों में सड़ गये हैं
आदमी खरीदे जा रहे हैं पुरूस्कार बिकते हैं
जो नहीं बिकना चाहता उसका भाव रद्दी से भी कम हो जाता है ....
मैं अब भी
ख़्वाब में परियां को बुलाना चाहता हूँ
मगर अब मुझे नींद नहीं आती
सही कहा आदरणीय वीनस जी इन्ही सवालों ने हम सब की नींद उड़ा रखी है ।
शानदार सोच और उम्दा रचना के लिए बधाई स्वीकारें ।
वीनस केसरी जी , लाजवाब . यथार्त से ओत प्रोत .बहुत बहुत बधाई .
आदरणीय वीनस केसरी जी, सादर प्रणाम! वाह वाह!!, हाय!, हय...? कोटि कोटि नमन इससे कुछ कम नहीं, बहुत सुन्दर कविता। हार्दिक बधाई। सादर,
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