मेरे सामने की सीट पर एक युवती और एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे हुए थे तथा मेरी सीट पर भी मेरे इलावा एक सहयात्री बैठा था । ऊपर की सीट पर भी दो लोग सोये थे । युवती अपने बगल के यात्री से बोली, "अंकल आप किनारे होकर बैठें तो मैं जरा लेट लूँ ।" और वो कम्बल शरीर पर डाल कर लेट गयी । ऊपर की सीट से एक यात्री के उतरते ही मैं भी ऊपर की सीट पर जाकर लेट गया। मेरा गंतव्य सुबह सात से पहले नहीं आने वाला था अतः मैं आँख बंद सोने का प्रयास करने लगा । कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला ।
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"चटाक""कुछ नहीं भाई साहब, आप सोइये, अंकल के पेट में दर्द हो रहा था, मैं दवा दे दी हूँ ।" acchi ''laghu katha'' thi padte padhte hansi aa gai vah ''bagi'' ji kya davai pilvai hai .........
asardaar ilaaj
आदरणीय बागी जी ,समाज के ऐसे लोगों का ईलाज ऐसी ही दवा से होना चाहिए ,बढ़िया लघु कथा पर हार्दिक बधाई .
आदरणीय बिना कहे सब कुछ कह देने की कला भी आपसे सीखनी होगी। अप्रतिम! मेरी बधाई स्वीकारें।
बड़ी असरदार दवा थी ...
सही समय पर दवा न दी जाए तो मर्ज बढ़ने लगता है
बागी जी लघु कथा के माध्यम से आपने इलाज़ भी बता दिया क्या कहने ....
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