मंदिर के बाहर भिखारियों की कतार में वो भी खड़ा था, पर भिखारी नहीं लगता था, उसकी आँखों में खुद्दारी, चेहरे पे आत्मविश्वास था । सेठजी हमेशा की तरह एक घंटे की पूजा की समाप्ति के बाद बाहर आये, चाल में अमीरों वाला रौबीलापन और चेहरे पे दानकर्ता होने का गर्व, जैसे साक्षात् भगवान् लोगों का दुःख दूर करने उतर आये हो, सबसे ज्यादा आकर्षक वो फूली हुई तोंद, शायद संसार के हर पुण्य का हिसाब इसी में हो, साथ में पचास के नोटों की गड्डी लिये बूढ़ा मुनीम, जो कई पुश्तों से सेठजी के सभी काम धंधों का हिसाब किताब रखते आया है, जैसे भगवान के लिए चित्रगुप्त ।
उसने खड़े खड़े हिसाब लगा लिया था, कोई 100 भिखारी होंगे, उस हिसाब से सेठजी 5000 तो हर हफ्ते बाँट ही देते है, हाँ ठीक है, उतने में मेरा काम हो जायेगा, मन ही मन हिसाब लगाकर बहुत खुश हुआ वो । सेठजी रुपये बांटते आ रहे थे, भिखारियों की दुआओं से अभिभूत हुए जा रहे थे और उस तक पहुँचते पहुँचते सेठ जी शायद थक चुके थे, जैसे ही सेठ ने उसे पचास का नोट पकड़ाया, उसने हाथ पीछे करके जोड़ते हुए कहा, सेठजी मुझे भीख नहीं चाहिए, मुझे कुछ रुपये उधार दे दे, बड़ी महरबानी होगी, सिर्फ 5000, आपका बड़ा नाम सूना है, बड़े धर्मात्मा एवं दयालु है आप ।
उधार का नाम सुनते ही सेठजी के चेहरे के भाव बदल गए थे, अब वो सेठ लगने लगे थे, बोले, "कैसे देगा वापस"
"मालिक, मेहनत करूँगा, साइकल लूँगा, गाँव से सब्जी लाकर यहाँ बेचूंगा, कुछ ही महीनो में आपका पैसा लौटा ..................
सेठजी लगभग उसे दुत्कारते हुए आगे बढ़ गए, मुंशीजी कुछ अटक से गए थे. उन्हें उस युवक की आँखों में सच्चाई का हिसाब किताब नजर आया ।
सेठजी के साथ गाड़ी में बैठे तो बड़ी हिम्मत कर के बोले "मालिक, दे देना था न उस गरीब को रूपया, "पागल हो गए हो क्या मुंशीजी, अगर वो भाग जाता और नहीं देता वापस तो ? पर मालिक, ऐसा आदमी लगता तो न था और अगर, नहीं भी देता तो समझो की एक हफ्ता हमने दान नहीं किया या किसी एक ही भिखारी को दे दिया, यूँ भी तो 2 साल पहले जब घाटा पड़ा था व्यापार में तो हमने 2 महीने दान दक्षिणा नहीं की थी ना ।
मेरे हिसाब से तो कुछ नुक्सान न था, शायद कुछ उसका भला करके हमे पुण्य ही मिलता, बिचारा मेहनत करने की तो कहता था, ये मंदिर के बाहर के भिखारी तो सालों से बस आप जैसे सेठों के पैसे पे ऐश करते फिरते है, न काम न मेहनत, कभी आपने शाम के वक़्त इन्हें देखा है सब पास वाली देशी कलाली के बाहर दिखाई देते है ।
सेठ जी को गुस्सा तो बहुत आया सच सुनकर, पर संयमित किया अपने आप को और बोले, "मुंशीजी आप वाकई हिसाब में बहुत कच्चे है, इन्ही गरीबों की दुआओं से तो हमारे पुण्यों का हिसाब बराबर होता है, अब यूँ हर किसी की मदद करके मेहनत से रोटी कमाना सिखायेंगे तो यहाँ मंदिर के बाहर लाइन कैसे लगेगी, हमें दुआएं कौन देगा"
5000 रुपये में हजारों दुआएं वो भी हर हफ्ते, भाई कुछ हिसाब हमें भी तो देना है न चित्रगुप्त को, सेठजी की हंसी ने बात को वहीँ ख़त्म कर दिया था ।
चलती कार के धुंए में मुंशीजी सोचते रहे, सच में उनका हिसाब कितना कच्चा है ।
Comment
वाह रे हिसाब-
जय हो-
आदरणीय-
अब यूँ हर किसी की मदद करके मेहनत से रोटी कमाना सिखायेंगे तो यहाँ मंदिर के बाहर लाइन कैसे लगेगी, हमें दुआएं कौन देगा"
bahut khub Singh sahab.....
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