दुखीराम नॆ जब जब दीनानाथ के द्वार पर ख़ुशामद की,,,,नतीज़ा हर बार उनकी पत्नी की कोंख से कन्या रत्न की ही प्राप्ति हुई,,इस तरह शासकीय जन-गणना मॆं चार अंकॊं की बढ़ोत्तरी हो गईं,,,लेकिन दुखीराम की ख़ुशामद परॆड अब तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गई,,,ख़ुशामद करनॆ के स्थान भी अनगिनत हो गये, भगवान तो भगवान अब दुखीराम पंडित, मौलवी, और तुलसी, नीम, पीपल, बरगद,सभी की ख़ुशामद करनॆ लगॆ,,,और आखिरकार इस बार दुखीराम की ख़ुशामद नें अपना रंग दिखाया,,और दुखीराम कॆ घर मॆं कुल का चिराग़ जगमगाया,, दुखीराम कॆ सारे दुख: पता नहीं कहाँ गायब हो गयॆ,आज दुखीराम नॆ अपने मालिक की खूब खुशामद की तब जाकर हाँथ मॆं एक सौ रुपैया आयॆ,,,दुखीराम खुश हुआ कि बॆटॆ का पहला जन्मदिन तो सम्पन्न हो जायेगा,कर्ज का क्या है आज नहीं तो कल चुकता कर दूंगा,,देखते ही देखते बॆटा पाँच साल का हो गया,,दुखीराम ने आज फ़िर जमीदार की खूब ख़ुशामद की फ़िर एक सौ रुपैया हाँथ मॆं बेटे का दाखिला हुआ,,बॆटा होनहार था, पढ़ता रहा दिनो-दिन बढ़ता रहा, इसी दौरान दुखीराम की पत्नी बीमार हुई,,दुखीराम ने फ़िर पंडित, मौलवी, और तुलसी, नीम, पीपल, बरगद, सभी की ख़ुशामद लेकिन खुशामद किसी काम न आई,,और दुखीराम की पत्नी स्वर्ग सिधार गई,,अब तो दुखीराम सच मे दुखीराम हो गया,,समय बीतता गया,,खुशामद कर कर के बॆटियॊं के हाँथ पीलॆ कर दियॆ,,,,बॆटा पढ़ लिख कर तैयार हुआ तब दुखीराम ने बड़े साहब की जमकर खुशामद की और दुखीराम का बेटा पटवारी हो गया,,,दुखीराम बहुत खुश हुआ क्योकि जो हमेशा वह खुशामद करता था आज लोग उसकी और उसके बॆटॆ की खुशामद करते थे,,,समय आया बॆटॆ का रिश्ता आया,,इस बार लड़की वालों नॆ दुखीराम की जमकर खुशामद की, तब दुखीराम को खुशामद का स्वाद मालूम हुआ कि खुशामद का स्वाद कितना मीठा होता है,,,बॆटॆ की शादी धूम-धाम से हुई बहू नये ज़माने की पढ़ी लिखी मिली,,दहेज़ भी अच्छा खासा मिला,,समय गतिमान रहा,,दो पोती एक पोता भी दुखीराम के आँगन मॆं आ गये,,पहली बार दुखीराम ने सुखीराम का रूप धारण किया,,,,लेकिन यह क्षणिक था,,बहू नये ज़माने की,,,बेटा पटवारी,,,,बड़ॆ बड़े जमीदार उसके बेटॆ की खुशामद करते थॆ,,,,बहू ने नये ज़माने की परम्परा को निभाया और दुखीराम का हुक्का-पानी बंद हो गया,,दिन भर पोता पोतियो की देखभाल करता,स्कूल छॊड़नॆ जाता,लॆने जाता, सब्जी तरकारी लाता,गाय बकरी का चारा पानी,,,लकड़ी लाना गोबर फ़ेंकना सब काम दुखीराम के हिस्से मे आये,,,,और ऊपर से बहू के सुबह शाम प्रबचन और श्लोक,,,,दुखीराम के साथ समय आँख मिचौली खेलता रहा,,,जब दुखीराम बहू बेटॆ की खुशामद करता तब दो रॊटी चटनी अचार नसीब होतॆ,जब पोता पोतियो की खुशामद करता तब,,,एक गिलास पानी नसीब होता,,,,दुखीराम सच मे कितना दुखी था,,,,समय ने अब भी तो दुखीराम का पीछा नहीं छॊड़ा,,उम्र अपना रंग दिखा रही है,,,,कमर झुक कर धनुष बन गई है,,,,पॆट पींठ के साथ चिपक कर भरत-मिलाप कर रहा है,,,बालो मे सफ़ेदी अपना आधिपत्य जमा चुकी है,चेहरे पर लटकी चमड़ी और झुर्रियाँ कुश्ती कर रही हैं,,,बेचारा दमा कॆ मरीज़ दुखीराम ने बेटॆ की खूब खुशामद की, तब जाकर बेटॆ ने अपना दायित्व निभाया,,और सुना है,,,आज कल दुखीराम वृद्धाश्रम मॆं है,,,अब वहां कॆ मुन्सी की खुशामद करता है तब बेचारे का पॆट भर पाता है,,,,,,,अब दुखीराम हर आने जाने वाले से कहता है,, भाइयो,,, भगवान ने खुशामद क्यों बनाई है,,,,,,?
कवि-राज बुन्दॆली
४/३/२०१३
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वेदिका . ,, ,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,
जीवन के शुरू से आखिर तक खुशामद ही खुशामद लेकिन नतीजा वो नही जो चाहिए ।
जीवन के कटु पहलु को उजागर करती हुयी लघुकथा, अच्छा प्रयास !
शुभकामनायें
सादर वेदिका
Rekha Joshi,,,, ,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,
सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' ,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,
बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) ,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,
Laxman Prasad Ladiwala ,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,
SANDEEP KUMAR PATEL,,,,,,,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,
Dr.Prachi Singh ,,,,,,,,,,,,,,जी मैने पहली बात गद्य या लघुकथा के रूप मॆं कुछ लिखने का प्रयास किया है , कितना सफ़ल हुआ हूँ मुझे पता नही ,,,आप ने स्नेह दिया इन भावो को इस हेतु आपका दिल से आभारी हूँ,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,,,,
सुंदर सदेश देती हुई लघु कथा ,बधाई राज जी .
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