बॆटॊं जैसा ही मिले, इनको भी अधिकार ।
विनती है हर मात सॆ, बेटी को मत मार ॥
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माता,बहना रूप में, मिलता इनका प्यार ।
बेटी मूरत प्रेम की , जानत है संसार ॥
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इनको मिले समाज में, उतना ही सम्मान ।
कुल का दीपक पूत है , बेटी घर की शान ॥
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बदलो अपनी सोच को,दो नवीन आकार ।
नारी कॆ कारन रहॆ , हरा-भरा परिवार ॥
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर और सटीक बातें कह गये ये दोहे. बधाई.
सुंदर दोहे। आज लोग कविता\शायरी लिख रहे हैं. ऐसे में दोहे बहुत अच्छे लगे।
सुन्दर दोहे,,,,,,,,,,, वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या कहने हैं,,,,,,बहुत बहुत बधाई आपको,,,,,,,,,,,,,
bahut hi sshkt dohe .. gaagr me saagr samete huve badhai
कथ्य में उन्नत भावों से सजे दोहे शिल्पगत कमियों के कारण जुबान पर चढ नहीं पाते.. . मात्राओं में गेयता को बांधिये.
शुभ-शुभ
पुत्रों जैसा ही मिले, इनको भी अधिकार/
विनम्र विनती मात है , बेटी को मत मार//
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आदरणीय शिरोमणि जी सुंदर दोहे
सुन्दर दोहे भाई पाठक जी.....
आदरणीय दीपक जी
सादर
सुन्दर दोहे
मन मोहे
बधाई.
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