जस गॅवार गुण हीन अज्ञानी। आशा विपरीत सदा दुःख मानी।।
उलटि भजे सुनि कर्म भय ताहू। क्षमा राखि इच्छित फल पाहू।।
ज्यों ढोल मढि़ पोल उर राखा। गावहिं सगुन भवानहि भाषा।।
ढमढम ढोल ताल बिनु बाजा। नटसि नाथ हिय सुर ताल साजा।।
जनम जनम सेवा शूद्र वारे। दुःख दरिद्र त्यों जीवन धारे।।
कबहु न सीस मान अधिकारी। निषाद मित्र शबरी पय वारी।।
ज्यों समाज पशु धन श्री साजे। शत विधि भला असत रस राजे।।
बलि शीशा नर क्षुधा मिटाही। गिघ्द भालु कपि प्रभु जिय माही।
सकल ब्रहम संग रहे भवानी। हरी जनम तप यज्ञ फल दानी।।
ममता सती प्रिय पवित्र सुजानी। तिय देवि प्रभु सत्यम बखानी।।
हरि पद तुलसी दास प्रनामा। तुलसी पद गहे सालि ग्रामा।।
कनक भूधराकार तृण तोला। तुलसी बृन्दहि मोल अमोला।।
जन जन निज प्राणन कर खोजा। काम क्रोध तजि सत्यम होजा।।
पर निन्दा पीड़ा कंज गंधा। सोषय भ्रमर कूप कर अंधा।।
के पी सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
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