हरि-महिमा
तिनका तिनका हरि नाम धरै, महिखंड समूल रसातल को!
यमलोक सुलोक हवा पहिरे, हरि नाम जपे हरि आपन को!!
हनुमान हरी हरि राम रटे, मिलगे वन मा सुग्रीव सखा !
रघुवीर मिले दुःख दूर भये, मनमीत बने हरि राम सखा!!
कहि कोल किरात चंडाल जपे,उलिटा हरि नाम सुनाम लगे!
हरि नाम जपे कवि के रसना, सुर प्रीत बने गंगा जमुना !!
हरि नाम कथा कहहि सुनही, पर प्राण सराहि हरे दुःख को!
कही मोह बढाहि चले मद में, हरी नाम भुलाय पड़े गत को!!
(के.पी.सत्यम)
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
हरी महिमा पढ़ कर मन मन्त्र मुग्ध ही नही हुआ वर्ना जाप भी हो गया हरी केवल प्रसाद जी, इसके लिए बधाई
हरि के ही प्रचलित कई नाम का सुन्दर उपयोग की जानकार आदरणीय सौरभ जी के टिपण्णी से होने पर इस
काव्य की मन में महिमा और भी बढ़ गयी |
भाई केवल प्रसाद जी, आपके सधे हुए शब्द-संयोजन से कविता में जो प्रवाह उत्पन्न हुआ है वह विमुग्धकारी है. तभी पदांत का सम्यक निर्वहन न होना भी वाचन-प्रवाह में खललनहीं डालता.
हरि शब्द के यमक से आपने रोचक पंक्तियाँ साझा की हैं. यह इस शब्द हरि (या हरी) की ही महिमा है कि इसके कई-कई प्रचलित शब्दार्थों से यमक अलंकार का मजा मिलता है.
उदाहरण के तौर पर -- हनुमान हरी हरि राम रटे, मिलगे वन मा सुग्रीव सखा -- इस पंक्त ने बढिया प्रभाव उत्पन्न किया है..
कहि कोल किरात चंडाल जपे,उलिटा हरि नाम सुनाम लगे- इस पंक्ति में इंगित कई-कई भक्तों के नाम मस्तिष्क में आते हैं, और आदि कवि के नाम पर तो आपने उलिटा हरि नाम का वाक्यांश ही दे दिया है.. !
एक बात : छंदबद्ध रचनाओं को प्रस्तुत करते समय प्रयुक्त छंद का नाम तथा तत्संबंधी विधा को सूत्रवत् ही सही अवश्य दे दिया करें. जैसे.. प्रस्तुत रचना दुर्मिल सवैया के वृत पर है लेकिन पदांत के संदर्भ में उस वृत को पूरी तरह पालन नहीं करती.
बहुत सुन्दर काव्य रचा है आपने बधाई आदरणीय केवल प्रसाद जी!
तिनका तिनका हरि नाम धरै, महिखंड समूल रसातल को!.... सत्य सुंदर
अपनी तरफ मै सोचती हूँ की अगर
हनुमान हरी हरि राम रटे, ... के स्थान पर
हनुमान रमे रम राम रमें
और
मिलगे वन मा सुग्रीव सखा !
मिलिहें वन मा सुग्रीव सखा
का उपयोग करेगे तो और निखार आएगा।
वैसे यह केवल सुझाव भर है
महाशिव रात्रि पर्व की अनंत कोटि शुभकामनाये आपको
सादर वेदिका
कहि कोल किरात चंडाल जपे,उलिटा हरि नाम सुनाम लगे!
हरि नाम जपे कवि के रसना, सुर प्रीत बने गंगा जमुना !!
वाह वाह बड़े भाई अपने तो कमाल कर दिया !!!!हार्दिक बधाई ......
बहुत ही सुन्दर केवल प्रसाद जी!
हरि नाम जपे कवि के रसना, सुर प्रीत बने गंगा जमुना !!
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