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मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी प्रतिदिन भूलता, उनका हर अहसान॥
भगवान मानव की गलतियों भूला है, और मानव भवान के किये को ही भूलता दीखता है. दोनों भूल एक कैसे हुई ??? यदि एक नहीं है तो फिर उपरोक्त दोहे के दूसरे विषम में ’भी’ क्यों आया है ?मैं भी प्रतिदिन भूलता को क्यों मैं प्रतिदिन भूलता किया जा सकता है न !?
एक बात : पुनः निवेदन करूँगा कि आप रचना पोस्ट् करने की जल्दी में न रहें. रचना को कुछ दिन अपने पास रहने दें, सुधार होता रहेगा. जब आश्वस्त हो जायँ कि अब सुधार लगभग संभव नहीं तो ही रचनाएँ पोस्ट करें.
प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।
जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥
मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी जाता भूल हूँ, उनका हर अहसान॥
सुन्दर दोहो के लिए बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी
दोहे मन को भाये, प्रेम और विश्वास का भाव लिए सुन्दर दोहो के लिए बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी
प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।
जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥
दृश्य बदलते हैं प्रिये! बदलो अपनी दृष्टि।
निज
सुन्दर दोहे
बहुत सुन्दर भावमय दोहावली प्रिय विन्ध्येश्वरी जी
बहुत बहुत बधाई
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