For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  

खुशियाँ जब जब आई हैं  
मैने मुट्ठी भर भर बिखरा दिया है चारो तरफ 
इस आशा से और दुवाओं से 
कि लहलहाए खुशियां की हरियाली चारो दिशा|... 
कल मुस्कुराते होंगे चेहरे कई  
जिनकी मुट्ठी में होंगे खुशियों के खजाने

और उनको देख मुस्कुराते 
कतिपय थिरकेगी 
मेरे चेहरे पर भी एक मुस्कान |
मुझे अपनी झोली की फिकर भी नहीं |
मेरे हाथ खाली है 
और देखो मेरी झोली में अब कुछ भी नहीं,,,,..

अब मुझे नदी होने का सम्मान नहीं चाहिए
कि  बहती रहूँ बिन कुछ मांगे 
और निचुड्ती जाऊं  बूंद बूंद तक.....
न ही नदी कह कर देना अभिशाप  
कि आये जो धो ले हाथ 
और मेरे पवित्र तट पर बिखेर दे कीचड़ का सैलाब |

देखो ध्यान से     
कि अब मैं एक बूँद पानी भी नहीं
कि ठहर जाऊं किसी की पलक के किनारे ...
या कि टपक कर गिर जाऊं 
आंसू बन किसी की आँखों के सहारे 

आज मत पूछो मुझसे
जिंदगी के हिसाब में 
क्या खोया क्या पाया है मैंने
हाथ खाली है या भर आया है 
आज मैंने अपनी मुट्ठी कस  ली है| ............... डॉ नूतन डिमरी गैरोला 

Views: 444

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 20, 2013 at 8:17pm

बहुत बेहतरीन! लाजवाब! नदी के दर्द को जिस खूबसूरती से आपने उकेरा है उसकी प्रशंसा किया जाना संभव नहीं!

Comment by Yogi Saraswat on March 19, 2013 at 3:07pm

अब मुझे नदी होने का सम्मान नहीं चाहिए
कि  बहती रहूँ बिन कुछ मांगे 

और निचुड्ती जाऊं  बूंद बूंद तक.....
न ही नदी कह कर देना अभिशाप  
कि आये जो धो ले हाथ 
और मेरे पवित्र तट पर बिखेर दे कीचड़ का सैलाब |
कभी न कभी हर चीज की एक अति आती ही है और यही सब हमारी नदियों के साथ हो रहा है ! इसी व्यथा को आपने बहुत खूबसूरत शब्दों में बयान किया है
Comment by ram shiromani pathak on March 18, 2013 at 7:41pm
देखो ध्यान से     
कि अब मैं एक बूँद पानी भी नहीं
कि ठहर जाऊं किसी की पलक के किनारे ...
या कि टपक कर गिर जाऊं 
आंसू बन किसी की आँखों के सहारे !!!!!!!!!!

आदरणीया नूतन जी  बधाई।

Comment by vijay nikore on March 18, 2013 at 10:57am

आदरणीया नूतन जी:

 

देखो मेरी झोली में अब कुछ भी नहीं,,,,..

 

दूसरों को इतनी खुशियाँ देने के बाद

अपनी झोली खाली भी हो तो भी भरी ही है!

 

एक और शानदार कविता के लिए बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service