कभी कभी शब्द आकार नहीं लेते
और मैं बह जाती हूँ अक्षरों में
सुनो ध्यान से ये क्या कहते है ?
खामोश हैं ???
नहीं इनमे कलकल का नाद है
मधुर गीत है और विस्फोट की आवाज है
इनमे शोर है तो मौन शान्ति की तृप्ति है
इनमे खो जाना
ठीक उसी तरह से है
जैसे क्रियान्वयन से बहुत पहले
भावनाओं में बहना..
ये बोलते है
दुनियाँ की हज़ार भाषाएं
इनमे समन्वित है कितनी ही भावनाएं|
आओ बह जाये अक्षरों में आज
रच लें अपने पसंद का संसार | ...
Comment
भावनाओं की अभिव्यक्ति की प्रारंभिक अवस्था शब्दाग्रह ही है. आपकी इस कोशिश पर दिल से बधाई...
आदरणीया डॉ. नूतन जी,
अक्षरों का संसार जितना दृश्य व श्रव्य.. उससे कहीं ज्यादा अश्रव्य अनाभिव्यक्त..
पहला आयाम हमारी भावनाओं का जो शब्दाभिव्यक्ति की खोज में अक्षर संसार में कभी शांत तो कभी क्लांत मन ही मन उलझती रहती हैं
और दूसरा हमारे अध्यात्म के ज्ञान से निस्सृत बेहद गहन... कि शब्द नाद ही सृष्टि की अभिव्यक्ति का कारण भी है.
इस मनस-चिंतन को विस्तार देती अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
वाह! शब्द बनना, शब्दों की खामोशी को सुनना शब्द शब्द चलना और शब्दों की रो में बह जाना. सुन्दर रचना आदरणीया डॉ. नूतन डिमरी गैरोला जी.
आदरणीया, डॉ नूतन डिमरी गैरोला जी,.बहुत सुन्दर बधाई स्वीकारें।
//कभी कभी शब्द आकार नहीं लेते
और मैं बह जाती हूँ अक्षरों में//
नूतन जी, यह दो पंक्तियाँ ही बहुत कुछ कह गई हैं।
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
Sadar dhanyvaad Kunti ji..
डॉ नूतन जी, शब्दों के भाव बहुत गहरे है. अति सुंदर .
धन्यवाद केवल जी ...
आदरणीया, डॉ नूतन डिमरी गैरोला जी, अक्षर अर्थात शब्द इनकी तो बस भावनाएं ही हैं इनकी कोई जाति- धर्म, भेद -भाव नहीं होते हैं..बहुत सुन्दर चित्रण बधाई स्वीकारें।
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