कुछ रिश्ते अनाम होते हें
बन जाते हें
यूँ हीं, बेवजह, बिना समझे
बिना देखे, बिना मिले ....
महसूस कर लेते हें एकदूजे को
जैसे हवा महसूस कर ले खुशबु को
मानो मन महसूस कर ले आरजू को
मानो रूह महसूस कर ले बदन को
मानो बादल महसूस कर ले गगन को
मानो ममता महसूस कर ले माँ को
कैसे बन जाते हें ...
ये अनायास ... अजनबी रिश्ते
पता भी नहीं चलता ....
जब तक दूर नहीं होते हमसे ....
और तब...
सवाल उठते हें जहन मैं
वजूद पूछते हें रिश्तों का
क्या ये रिश्ता .. पिछले जन्म का है ???
और अगर नहीं ?
तो क्यूँ खींचता है ?
जैसे लोहा खींचे चुम्बक को ...
जज्बात शायद वजह होगी... !!
पर, इतना जज्बाती भी क्यूँ होता है कोई....
कि, जिसको देखा नहीं, सुना नहीं, छुआ नहीं...
महसूस होता है हर कहीं ..
वो एकाएक क्यूँ इतना अज़ीज़ हो जाता है... ?
ये रिश्ता आखिर क्या कहलाता है..??
बोलो ...., बोलो ...न.....
Comment
अनाम रिश्तों की खूबसूरत कश्मकश.. पर कुछ सवाल शायद कभी ज़वाब नहीं पाते...यही शायद खूबसूरती भी है.
शुभकामनाएं
आदरणीय मीना पाठक जी, वंदना तिवारी जी, योगी सारस्वत जी, मुखर्जी जी तथा विजय निकोर जी बहुत बहुत धन्यवाद आप लोगों की मधुर प्रतिक्रिया के लिये.
क्या बोलूँ .. शायद एहसास का रिश्ता है .. बहुत सुन्दर लिखा आप ने बधाई आप को
और अगर नहीं ?
तो क्यूँ खींचता है ?
जैसे लोहा खींचे चुम्बक को ...
जज्बात शायद वजह होगी... !!
पर, इतना जज्बाती भी क्यूँ होता है कोई....
कि, जिसको देखा नहीं, सुना नहीं, छुआ नहीं...
महसूस होता है हर कहीं ..
वो एकाएक क्यूँ इतना अज़ीज़ हो जाता है... ?
सच कहती सार्थक रचना ! बधाई स्वीकार करें
adarneer kumar jee, apki kavita ko parkar itna hi kah sakti hoon ki - han riste janmon janmon ka hota hai aur har janam mei pichhaa karta hai.tahbi to ham jisko kabhi dekhe bhi nahin hote hai usse anjane mei hi riste ban jate hai.bahoot sundar kavita .dhaniavaad
आदरणीय अमोद जी:
कि, जिसको देखा नहीं, सुना नहीं, छुआ नहीं...
महसूस होता है हर कहीं ..
वो एकाएक क्यूँ इतना अज़ीज़ हो जाता है... ?
बहुत सच, बहुत ही सच कहा है आपने।
सादर,
विजय निकोर
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