आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर हँसते हैं आँसू।।
ग़म से जब दिल बेज़ार होता है,
ऐसे हाल में मुस्कुराना भी बेकार होता है,
तभी मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
बुरे वक़्त का दर्द सीने में छुपाया नहीं जाता,
क्या करें,जब किसी को ये बताया नहीं जाता,
यही दर्द के मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
इस दर्द को सीने में संभालना होता है मुश्किल,
इस बाढ़ को बढ़ने से रोकना होता है मुश्किल,
तोड़कर नयनों का बांध छलक पड़ते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
ग़म का ही साया नहीं होते ये आँसू,
ख़ुशी का हमसाया भी होते हैं ये आँसू,
तभी तो कभी पाकर ख़ुशी आँखों में मचलते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर हँसते हैं आँसू।।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]
Comment
डॉ प्राची जी,सादर प्रणाम ! आपने मेरी रचना को समय एवं सराहना प्रदान की ,जिसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ।
भावनाओं के अतिरेक को दर्शाते हैं आंसू, तभी तो चाहे गम हो खुशी हो जीत हो हार हो या दिल में उमड़ रहा प्यार हो हमेशा साथ देने चले आते हैं आँसू
आँसुओं पर सुन्दर अभिव्यक्ति प्रिय सावित्री जी
शुभकामनाएँ
मीना जी और बृजेश जी, आपके बधाई संदेशों के लिए मैं आभारी हूँ।
बहुत सुन्दर रचना .. बधाई
बहुत सुन्दर!
धन्यवाद राजेश जी ! महाकवि जयशंकर 'प्रसाद' का वह काव्य -ग्रन्थ हिंदी- साहित्य-सागर का एक अमूल्य रत्न है और मेरी यह कविता उसकी धूल भी नहीं है।पर यह सत्य है कि 'आँसू' मुझे स्वयं बहुत प्रिय है और उसी से प्रेरित होकर मैंने आँखों में बसे इन आँसुओं को यह शीर्षक देकर इस कविता के रूप में ढाला।
सुंदर कविता, इसी शीर्षक से आंसू सर्ग याद आ गया
आदरणीय राम शिरोमणि जी एवं दिनेश जी,नमस्कार। मेरी कविता को समय देने और सराहने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद।ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये।
आदरणीय कुन्ती जी,आपने मेरी कविता को आत्मसात किया,इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ।निःसंदेह जीवन के लिए आँसू मोती के समान अमूल्य हैं।
आदरणीय विजय जी, सादर प्रणाम ! आपने कविता के मर्म को समझा,इसकी मुझे प्रसन्नता है।बहुत -बहुत आभार।
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