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1.किरीट सवैया


कोमल कोपल आमन बीचल, बैठि गयी धुन ताल सुनावत !
आय गयो फिर पीत बसन्तम, प्यार रसाल अलाप लुभावत!!
बागन बीच उड़े तितली मधु, बालक भांवर सो इतरावत !
फूल हँसे विहसे तन औ मन,‘सत्यम‘ ज्ञान विराग लुटावत!!

2.दुर्मिल सवैया


जब कन्त नहि हमरे घर मा, यहु बैरन कोकिल छेड़ रही !
फल फूल फले बगिया वनमा, पिक काक तिलेर चिढाये रही!!
ऋतुराज भले तुम जार मरो, वन .केसर. टेसु जलाय रही!
फिर काम रती धनुवा न चलो, महदेव उमा समुझाय रही!!
के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 26, 2013 at 5:58am

आदरणीय श्री राजेश कुमार झा जी,  आपका हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।

 

Comment by राजेश 'मृदु' on March 25, 2013 at 12:37pm

बहुत ही सुंदर । दुर्मिल में 'छेड़ रही, चिढ़ाय रही, के बाद जलाय रही एवं समुझाय रही' थोड़ी अवरोध पैदा कर गए किंतु आनंद पूरा रहा, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 24, 2013 at 11:33am

"आदरणीया वंदना तिवारी जी, आपकी उदार भावना एवं ‘छंद‘ सराहना के लिये आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार एवं धन्यवाद।"

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 24, 2013 at 11:32am

"आदरणीय श्री जवाहर लाल सिंह जी, छंद सराहना के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार!"

Comment by Vindu Babu on March 23, 2013 at 11:15pm
आदरणी केवल प्रसाद जी आपकी लेखनी अत्यन्त प्रभावशाली है।
साहित्यिक क्षेत्र मे अप्रतिम सफलता की शभकामनाएं।
सादर
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 23, 2013 at 8:12pm

बहुत ही सुन्दर रसपूर्ण !

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