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तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से

तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से .
 
 
तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से 
तुम्हारे कडवे झूठो , तीखे बयानों से 
कितना भी कीचड़ उड़ेलो मेरे जज्बातों पर 
मैं बहार आऊँगी चन्दन की महक से 


मेरी मुखरता तुम्हे उद्वेलित करती हैं 
मेरी ख़ामोशी तुमको आक्रोशित करती हैं 
तुम कैसे स्वीकार सकते हो मेरे अस्तित्व को 
अंगीकार करो अपने हृदय को मेरी चहक से 

लहरों की तरफ उफान भी मुझ में 
चाँद की तरह शांत भी रह सकती हूँ 
सूरज/आग की तरह ज्वालामयी भी 
जल न जाना कही तुम इस दहक से 


तुमने चाहा हैं हमेशा मुझे बेचारी सा 
टूटा सा हो लहजा मेरा लाचारी सा 
स्व का अंश मात्र भी लेश मात्र न रहे 
पर्याय बन गये हो तुम आतंक से 


लफ्जों ने बींधा हैं मुझे तीर सा 
नजरो ने टटोला हैं मुझे नगरवधू सा 
संत्रास झेल रही हैं अब तुम्हारी पीढ़ी 
कम होती जा रही हमारी संख्यक से 


तुम आत्माभिमानी नही 
तुम स्वाभिमानी नही तुम 
लफ्ज़ तुम्हारे , तुम्हारे नही 
छोड़ जाते हैं गंदे निशान से 

 नही किस्मत की मारी 
बस हमेशा रिश्तो से हारी 
देह से जैसे भी हो 
पर मन से हमेशा प्यारी 


इतिहास लिखना सिर्फ तुम्हारी थाती नही 
अब नया इतिहास लिखना हमारी बारी हैं 


तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से 
मैं महकती रहूंगी इतिहास में 
चन्दन की महक सी 
सूरज की दहक सी 
विरोध की आतंक सी 
अपनी जात की संख्यक सी 
पवित्र निशान सी 
माँ के रूप में भगवन सी ........................ नीलिमा

 

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Comment by Meena Pathak on April 8, 2013 at 7:34pm

इतिहास लिखना सिर्फ तुम्हारी थाती नही 
अब नया इतिहास लिखना हमारी बारी हैं ......... बहुत सुन्दर रचना नीलिमा जी .. बधाई 

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 8, 2013 at 4:44pm

thank u coontee mukerji ji

Comment by Neelima Sharma Nivia on April 8, 2013 at 4:44pm

Thank u so much Dr Prachi Singh ji 

Comment by coontee mukerji on March 26, 2013 at 10:47pm

नीलिमा जी अति सुन्दर रचना बधाई हो. होली की शुभकामनाएँ सहित .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 26, 2013 at 10:05pm

मेरी मुखरता तुम्हे उद्वेलित करती हैं 
मेरी ख़ामोशी तुमको आक्रोशित करती हैं .........किसी भी रूप से तुम्हे शान्ति नहीं, शायद तुम ही नहीं जानते तुम्हें चाहिए क्या?

तुमने चाहा हैं हमेशा मुझे बेचारी सा 
टूटा सा हो लहजा मेरा लाचारी सा ................स्त्री को अपनें इशारों पर नाचता सा ही चाहता रहा है पुरुष वर्ग, हमेशा पराधीन..

नही किस्मत की मारी 
बस हमेशा रिश्तो से हारी................फिर भी हार नहीं सकती, क्योंकि औरत है वो... औरत हारने का नाम ही नहीं 

इतिहास लिखना सिर्फ तुम्हारी थाती नही 
अब नया इतिहास लिखना हमारी बारी हैं..............बहुत जोशीले भाव, जो वर्तमान की धारा पलट इतिहास ही रच देंने में समर्थ हों 

पुरुष के दमन से आक्रोशित नारी के मन की संवेदना को सुंदरता से अभिव्यक्त किया है आदरणीया नीलिमा जी 

हार्दिक बधाई 

शुभकामनाएँ 

Comment by Neelima Sharma Nivia on March 26, 2013 at 8:02pm

Shukriya  Raj Sharma ji

Comment by राज लाली बटाला on March 26, 2013 at 7:44pm

तुम लिख देना इतिहास मेरे नाम से 
तुम्हारे कडवे झूठो , तीखे बयानों से 
कितना भी कीचड़ उड़ेलो मेरे जज्बातों पर 
मैं बहार आऊँगी चन्दन की महक से  !!!  Bahut khoob Neelima ji.

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