निशा की आँखे दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये .. . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ गयी .. आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने बाखूबी पढ़ लिया था । स्ट्रेस जांचा जा रहा था उसकी आँखों में कई अलग अलग मशीनों पर, सुनील परामर्श शुल्क चूका रहे थे अलग अलग काउंटर पर और निशा अलग अलग मशीन पर जाकर आँखे दिखा रही थी । मन चुप था कुछ कह पाने में असमर्थ सा । आखिरकार 3 घंटो के बाद डाक्टर ने अंदर बुलाया और कहा देखिये .. सुनील जी आपकी पत्नी की आँखों में काला मोतिया बिंद की शुरूवात हैं अभी कुछ कहा नही जा सकता, यह दवा डालिए और तीन माह बाद फिर से चेक-अप के लिय आइये । बस हम वापिस लौटे, दोनों गम में थे, अपनी अपनी सोचो की परिधि में ... कि इलाज का खर्च कितना आयेगा, घर कौन सम्हालेगा, क्या मेरी आँखे ठीक हो पायेगी ..... वैसे ही मैं अकेली हूँ मन से और अब ??? बस अपनी गति से चल रही थी और उन दोनों का मन अपनी गति से ..........
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रचना पसंद करने के आप का हार्दिक अभिनन्दन Meena Pathak ,Kishan Kumar ji
बहुत सुन्दर सोच नीलिमा सखी ...
रचना पसंद करने के आप सबका हार्दिक अभिनन्दन Er Ganesh Jee Bagi,Vijay Nikore jee
रचना पसंद करने के आप सबका हार्दिक अभिनन्दन Dr Prchi Singh jee ,Saurabh Panday jee ,Parveen Malik jee
जनसाधारण के मन की उहापोह...
............. वैसे ही मैं अकेली हूँ मन से और अब ??? ...यह पंक्ति जैसे ह्रदय को बेधती हुई चिंतन को झकझोर गयी.
इस रचना के लिए बधाई आ. नीलिमा जी
जो होता हुआ दिखता है, वही नहीं होता रहता -- इस भाव का सुन्दर चित्रण. लेखिका की रचना से गुजरना भला लगा है.
बधाई.. .
इंसान की गति से मन की गति ज्यादा तेज़ होती है ... मनोभावों का सुन्दर चित्रण ... बधाई
एक साधारण दम्पति के मनोभाव को बहुत ही खूबसूरती से अभिव्यक्त किया गया है , लेखिका को बहुत बहुत बधाई ।
आदरणीया नीलिमा जी:
सोच ऐसी अद्भुत चीज़ है कि कोई नहीं जान पाता
कि किस के मन पर क्या गुज़र रही है।
सरल शब्दों में अच्छी लघु कथा के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
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