For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभी बहुत कुछ सीखना है

मैं यह तो नहीं सकता कि मुझे सब कुछ आता है, पर यह बात मैं बहुत अच्‍छी तरह से जानता हूं कि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है. फिलहाल तो इतना ही सीख पाया हूं कि एक अदद नौकरी ठीकठाक चल सके. लेकिन इसमें भी एक पेंच है कि अगर काम अच्‍छे से नहीं किया तो समझो वह भी हाथ से गई. रोजमर्रा की दैनिक आवश्‍यकताओं को पूरा करने में लगा रहता हूं, जब कभी कहीं पर परीक्षा देने की बारी आती है तो हाथ पांव फूलने लगते है. न जाने क्‍यों परीक्षा के नाम से बचपन से ही डर लगता था, यह अलग बात है कि मैं परीक्षा में खरा ही उतरता हूं, लेकिन फेल होने का डर अपनी जगह डटा रहता है, क्‍योंकि सालों पहले दो तीन बार में फेल भी हो चुका हूं. इस डर की वजह से कभी किसी प्रतियोगिता परीक्षा में भाग नहीं लिया या खुद को परीक्षा में पास होने लायक नहीं समझा. नौ बार फेल होकर एक बार पास होने से अच्‍छा है कि परीक्षा ही न दी जाए, ताकि एक खुशनुमा भ्रम तो जिंदगी भर साथ रहेगा, हम भी पास हो सकते थे, हम भी अफसर बन सकते थे, लेकिन क्‍या करते वक्‍त और किस्‍मत ने साथ नहीं दिया. जबकि असल बात यह थी कि ईमानदारी और मेहनत से पढाई ही नहीं की. मन तो बहुत था, लेकिन फिर मस्‍ती कैसे मारनी थी. हीरोगिरी और मनमर्जी के चलते कॉलेज घूमने जाने का नतीजा यह निकला कि आज भी अधिकतर मोर्चों पर अपनी गिनती फेलियर्स में ही होती है. यहां दूसरों को क्‍या रास्‍ता दिखाएंगे, खुद की मंजिल का पता मालूम नहीं. बस यूं ही चलता जा रहा हूं, जो मिला उसको अपना बना लिया, ताकि वक्‍त बेवक्‍त कब जरूरत पड जाए. यूं भी जिंदगी बेहरम होती है. यह तभी मालूम चलता है जब आवश्‍यकताओं को पूरा करने की जिम्‍मेदारी स्‍वयं पर हो. वरना तो मां पिता और परिवार के भरोसे पर जिंदगी के रास्‍ते खुशनुमा ही लगते है. मां-पिता भी अपनी खुशियों को दरकिनार करते हुए अपने बच्‍चों पर ही ध्‍यान देते है. ताकि उनके बच्‍चों को जिंदगी का सफर पथरीला न लगे. थोडा बहुत समझ आने लगा है कि यदि वक्‍त रहते उनकी बातों पर ध्‍यान दिया होता, तो कम से कम आज मंजिल का पता तो मालूम होता ही.

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 29, 2013 at 11:44pm

आपने अपनी क्या कही कइयों के जीवन के भूलेबिसरे पल याद आगये.

वाकई बहुत कुछ सीखना है.  ..हम कइयों ने न सीखी होशियारी. ..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 29, 2013 at 6:51pm

सर्व गुण संपन्न तो प्रभु ही है, बाकी सभी को इस भौतिक जगत में निरंतर अपने से अधिक शिक्षित, गुनी,

अनुभवी और ज्ञानवान से सतत सीखते रहना होता है | तभी दायित्व बौध हो पाता है | कौन किस परिवेश में

पला बढ़ा और सत्संग में समय व्यतित करता है, वैसे ही परिपक्व हो कर अपना दायित्व निर्वहन कर पाता है |

और फिर देर आये दुरस्त आये,सुबह नका भूला शाम को भी लौट आवे तो भूला नहीं कहाता कहावते ध्यान में

रख, बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले जैसी कहावतों पर ध्यान देकर चिंतन करना चाहिए | बेबाक और स्पष्ट विचार रचना के लिए बधाई 

Comment by coontee mukerji on March 28, 2013 at 10:48pm

हरीश जी , अभी बहुत कुछ सीखना है. एक अच्छी खासी सीख है. परीक्षा के नाम  सुनकर बचपन में मेरे भी पेट में दर्द होता था.आज

सोचती हूँ तो हँसी आती है.टीचर को कैसे उल्लू बनाते थे.जब मैं टीच्रर बनी तब कभी भी पेट में दर्द की शिकायत  करने वाले बच्चे को

नहीं छोड़ा . खूब कड़वी दवा पिलाई. आज वे लोग उँचे उँचे पद पर आसीन है.अगर आपका  व्यक्तिगत अनुभव है तो चलिये -कहते है कि देर आये दुरूत आये.बहुत धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service