जिस ख्वाब की बदौलत ताउम्र सो न पाये
ना उनके हो सके हम वो मेरे हो न पाये
बादल ने पलकें भींची मौसम के आंसू छलके
पर सुर्ख दग्ध धरती के दाग धो न पाये
पैग़ाम दे गया वो सरहद पे मरते- मरते
कुर्बानियो पे मेरी आँखें भिगो न पाये
चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना
सरसब्ज़ हसरतों की कश्ती डुबो न पाये
कुदरत को जालिमो ने इस तरह से सताया
ना हँस सके परिन्दे अब्रपार रो न पाये
मायूस तू न होना किस्मत पे रख भरोसा
इक रोज़ पा सकेगा इस बार जो न पाये
तू मुझको जिंदगी दे या फिर मुझे कज़ा दे
परवर दिगार मेरा ईमान खो न पाये
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'राज'
Comment
प्रिय अरुन शर्मा आपको गज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया|
आदरणीया सादर प्रणाम, लाजवाब अशआरों से सुसज्जित उम्दा ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई के साथ साथ ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.
आदरणीय सौरभ जी आपकी प्रतिक्रिया सर आँखों पर कोई भी अशआर आपके दिल को छू सका ये मेरी कलम के लिए फख्र की बात है तहे दिल से शुक्रिया|
आदरणीया राजश कुमारीजी, आपकी ग़ज़ल बड़े कैनवास की हक़दार है. सभी अश’आर छू गये.
फिर भी मझे जाने क्यों बार-बार लगता है इस ग़ज़ल को थोड़ा और पगना था.
चाहा भले सभी ने बरबाद मुझको करना
सरसब्ज़ हसरतों की कश्ती डुबो न पाये.. . दिल के बहुत करीब हुआ है यह शेर.
एक बेहतर कोशिश पर ढेर सारी दाद कुबूल फ़रमायें.
सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी आपको गज़ल अच्छी लगी तहे दिल से आभारी हूँ |
उम्दा गजल के लिए बधाई ख़ास तौर से ये शेर बहुत भाया -
तू मुझको जिंदगी दे या फिर मुझे कज़ा दे
परवर दिगार मेरा ईमान खो न पाये
श्री राम जी तहे दिल से शुक्रिया|
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