लब पे ये मुस्कान जैसे चंद्रमा हो,
तारक खचित अम्बर में तुम अनुपमा हो –
विश्व के सुकुमार पलकों पर सुभगे,
स्वप्नवत तुम मधुर कोई कल्पना हो.
*****
जागो जगाओ विश्व को दो निज आलोक,
कलुष भेद तम दूर हटें जागे त्रिलोक,
बाहु में शक्ति, हृदय में भक्ति लिए सुकुमारी,
निर्भीक बढ़ो जीवन पथ पर बेरोक-टोक.
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माटी का कण तृण गंध तुम्हारे साथ है,
उन्मुक्त समीरण मंद तुम्हारे साथ है,
जीवन उपवन में खिली हुई ऐ नवल कलि,
रोम-रोम में रग-रग में भगवान तुम्हारे साथ है.
(ओ.बी.ओ. को जन्मदिन की हार्दिक बधाई)
Comment
आदरणीय शरदिन्दुजी, आपको मात्रिक रचना पर प्रयास करता हुआ देख कर अपार खुशी हो रही है.
संभवतः इस मंच पर यह आपकी कोई पहली प्रस्तुति है जिसमें मात्राओं की गणना पर ध्यान रखने का प्रयास हुआ है. यह प्रारंभ है, शिल्पादि पर चर्चा बाद में.
प्रतीत होते इस प्रथम प्रयास हेतु बहुत-बहुत बधाइयाँ, आदरणीय.
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