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इस जीवन में लगा रहेगा ,
दुःख-सुख हार जीत!
दृढ़ता से बढ़ते रहो ,
गाओ विजय का गीत !!

अविराम बढ़ते चलो ,
भर लो अन्दर शक्ति भरपूर !
यदि इच्छा शक्ति प्रबल होगी ,
नहीं लगेगी मंजिल दूर !!

विकारों का परित्याग कर ,
सद्गुणों को अन्दर भर !
कितना खोया कितना पाया ,
बंद कर अतीत का घर !!

एक दिन ऐसा आएगा ,
स्वयं रास्ता तुम्हे रास्ता बताएगा ,
तुम एक कदम चलोगे ,
वो कदम चला आएगा !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

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Comment by ram shiromani pathak on April 4, 2013 at 11:52am

आदरणीय गणेश सर क्या कहूँ बड़ी शर्म आ रही है अपनी इस गलती पर ..आगे से विशेष ध्यान दूंगा .....सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2013 at 11:43am

क्या कहूँ !! काश रचना पर आपने समय दिया होता, भाई आप यह क्यों नहीं समझते कि कविता केवल शब्दों का समुच्चय भर ही नहीं हैं , शब्द संयोजन मायने रखते हैं, गेयता एक दम से बाधित है, कथ्य मजबूत होते हुए भी रचना शिल्प पर कमजोर हो गई हैं । 

आदरणीय रकताले साहब से बिलकुल सहमत हूँ । रचना पर समय दीजिये ।

सादर ।   

Comment by ram shiromani pathak on April 4, 2013 at 11:38am

आदरणीय अशोक सर मै आपसे पुर्णतः सहमत हूँ गलती हुई  है ....सुधारने का प्रयास करता हु.....आपने अपना अमूल्य सुझाव दिया उसके लिए हार्दिक आभार .........

Comment by ram shiromani pathak on April 4, 2013 at 11:36am

adarneey kewl ji ,adarneey laxman sir hardik aabhar......

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 9:55am

आदरणीय, राम शिरोमणि पाठक जी,  सुप्रभात!  सुन्दर सकारात्मक सोच है।  सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 4, 2013 at 9:40am

सकारात्मक सोच के लिए बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 8:40am

अविराम बढ़ते चलो ,
भर लो अन्दर शक्ति भरपूर !..............अन्दर लिखने से भाव स्पष्ट नहीं हो रहे हैं.
यदि इच्छा शक्ति प्रबल होगी,
नहीं लगेगी मंजिल दूर !!

भाई राम शिरोमणि जी रचना का एक बार पुनः अवलोकन करें मुझे लगता है प्रथम पद के बाद के सभी पदों में सुधार की जरूरत है.

अनथक तुम बढ़ते चलो,

धर मन आत्म शक्ति भरपूर|

पूर्ण प्रबल हो मन भावना,

नहीं लगती मंजिल दूर ||

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