इस जीवन में लगा रहेगा ,
दुःख-सुख हार जीत!
दृढ़ता से बढ़ते रहो ,
गाओ विजय का गीत !!
अविराम बढ़ते चलो ,
भर लो अन्दर शक्ति भरपूर !
यदि इच्छा शक्ति प्रबल होगी ,
नहीं लगेगी मंजिल दूर !!
विकारों का परित्याग कर ,
सद्गुणों को अन्दर भर !
कितना खोया कितना पाया ,
बंद कर अतीत का घर !!
एक दिन ऐसा आएगा ,
स्वयं रास्ता तुम्हे रास्ता बताएगा ,
तुम एक कदम चलोगे ,
वो कदम चला आएगा !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
Comment
आदरणीय गणेश सर क्या कहूँ बड़ी शर्म आ रही है अपनी इस गलती पर ..आगे से विशेष ध्यान दूंगा .....सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद
क्या कहूँ !! काश रचना पर आपने समय दिया होता, भाई आप यह क्यों नहीं समझते कि कविता केवल शब्दों का समुच्चय भर ही नहीं हैं , शब्द संयोजन मायने रखते हैं, गेयता एक दम से बाधित है, कथ्य मजबूत होते हुए भी रचना शिल्प पर कमजोर हो गई हैं ।
आदरणीय रकताले साहब से बिलकुल सहमत हूँ । रचना पर समय दीजिये ।
सादर ।
आदरणीय अशोक सर मै आपसे पुर्णतः सहमत हूँ गलती हुई है ....सुधारने का प्रयास करता हु.....आपने अपना अमूल्य सुझाव दिया उसके लिए हार्दिक आभार .........
adarneey kewl ji ,adarneey laxman sir hardik aabhar......
आदरणीय, राम शिरोमणि पाठक जी, सुप्रभात! सुन्दर सकारात्मक सोच है। सादर,
सकारात्मक सोच के लिए बधाई
अविराम बढ़ते चलो ,
भर लो अन्दर शक्ति भरपूर !..............अन्दर लिखने से भाव स्पष्ट नहीं हो रहे हैं.
यदि इच्छा शक्ति प्रबल होगी,
नहीं लगेगी मंजिल दूर !!
भाई राम शिरोमणि जी रचना का एक बार पुनः अवलोकन करें मुझे लगता है प्रथम पद के बाद के सभी पदों में सुधार की जरूरत है.
अनथक तुम बढ़ते चलो,
धर मन आत्म शक्ति भरपूर|
पूर्ण प्रबल हो मन भावना,
नहीं लगती मंजिल दूर ||
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