For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन की

विभिन्न चेष्टाओं के

फिसलने धरातल पर

असंख्य आवर्तन

धकेलती कुण्ठाओं के.

 

पूर्वजों से

अर्जित संस्कारों का क्षय

आत्मघाती विचारों का

प्रस्फुटन और लय.

 

क्षितिज अवसादों के,

दिखाते शिथिल आयामों की

सूनी डगर

टूटते स्वप्नों पर

पथराई नजर.

 

उभरती शंकाएं, विचलित श्रद्धाएं.

हाहाकार करते, प्रश्रय खोजते

थके हारे प्रयास

अनन्त शून्य की अनन्त यात्रा

भय से बिखरा विश्वास.

 

त्रासित प्राण

कब लेगा विश्राम?

या पाएगा परित्राण

जब होगा प्रयाण?

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 2:29pm

फिसलते धरातल का अर्थ इस हिसाब से कत्तई न लें कि धरातल फिसलने लगी. हालाँकि शाब्दिक अर्थ यही होता है. शब्दार्थ के अलावे निहितार्थ औ भावारथ भी बिम्ब को कई-कई मायनों में अभिव्यक्त करते हैं.

सादर

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 18, 2013 at 1:35pm

मान्यवर पांडेयजी,

आभार. पहले भी निवेदन कर चूका हूँ  कि फिसलन भरे धरातल को फिसलनी या  'फिसलने धरातल' लिखने के अतिरिक्त विकल्प नहीं मिला. हम फिसलते हैं, धरातल नहीं. जिसे dialect कहा जाता है, भाषा के स्थानीय स्वरुप को, वो यहाँ राजस्थान में काफी फिसलना या फिसलनी है और फिसलने होने पर यहाँ तो कोई अंतर नहीं पड़ता. अब जो जिस प्रकार से फिसलना चाहे, स्वतंत्र है, मुझे किसी परिवर्तन, सुझाव या स्वरुपांतर से कोई आपत्ति नहीं है. आपकी अकिंचन पर  दृष्टि अदृष्ट के भय को कम करती है!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 18, 2013 at 2:13am

’आज’ का बियाबान कितना भयातुर करता है !

सुन्दर रचना के लिए हृदय से बधाई.

मन की

विभिन्न चेष्टाओं के

फिसलने धरातल पर

असंख्य आवर्तन

धकेलती कुण्ठाओं के.... .  में फिसलते धरातल होना समीचीन होगा.

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 13, 2013 at 3:47pm

उभरती शंकाएं, विचलित श्रद्धाएं.

हाहाकार करते, प्रश्रय खोजते

थके हारे प्रयास

अनन्त शून्य की अनन्त यात्रा

भय से बिखरा विश्वास.

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 

बधाई सर जी 

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 12, 2013 at 9:22pm

सभी सुधि पाठकों का आभार: सुझाव 'फिसलनी धरातल' के सही और स्वीकार्य. (परिणाम तो फिसलन ही...!!!)

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 8:30am

सुन्दर  अभिव्यक्ति आदरणीय. "फिसलने" को "फिसलनी" किया जा सकता है क्या?  

Comment by बृजेश नीरज on April 10, 2013 at 6:25pm

बहुत सुन्दर प्रयास! बधाई आपको।

Comment by वेदिका on April 10, 2013 at 2:13pm

उभरती शंकाएं, विचलित श्रद्धाएं.
अंतर के द्वंद को उभरती रचना पर  शुभकामनायें स्वीकारे  आदरणीय सुरेन्द्र जी!
वैसे फिसलने धरातल का एक और विकल्प हो सकता है फिसलनी धरातल .....
सादर गीतिका 'वेदिका'

Comment by ram shiromani pathak on April 9, 2013 at 7:49pm

पूर्वजों से

अर्जित संस्कारों का क्षय

आत्मघाती विचारों का

प्रस्फुटन और लय.

 

क्षितिज अवसादों के,

दिखाते शिथिल आयामों की

सूनी डगर

टूटते स्वप्नों पर

पथराई नजर.

अच्‍छी रचना हुई है आदरणीय !हार्दिक बधाई

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 9, 2013 at 5:32pm

राजेशजी की भाव ग्राहिता को प्रणाम. मेरी अभिव्यक्ति की कमजोरी है... फिसलन भरे धरातल को फिसलानी या  'फिसलने धरातल' लिखने के अतिरिक्त विकल्प नहीं मिला. हम फिसलते हैं, धरातल नहीं...पृष्ठभूमि की ग्रहणशीलता के लिए आपका आभार. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service