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हिंदी भाषा के शिंगार  रस छंद अलंकार 

नव शब्द माल लेके गीत तो बनाइए 

 संधि प्रत्यय समास, हों मुहावरे भी ख़ास  

भाव रंगों  में डुबो के कविता  रचाइए 

गीत या निबन्ध हो नवल भाव  सुगंध हो 

साहित्य सरोवर में डुबकी  लगाइए 

विद्या वरदान मिले लेखनी को मान मिले 

अपनी राष्ट्र भाषा का मान तो बढाइए 

 

 

भाव गहन बढे जो ध्यान नदिया चढ़े जो 

लेखनी की नाव लेके पार कर जाइये 

ह्रदय में प्रकाश हो मुट्ठी भरा आकाश हो  

प्रज्ञा  पुंज अर्णव से  अलख जगाइये 

हो छंदों की बरसात भीगे मन पात- पात 

ज्ञान अमृत  बूँदे  पीके  प्यास बुझाइये 

नित  जिसकी छाँव हो असीमित प्रभाव हो    

 ऐसा  विद्या कल्पतरु घर  में उगाइए

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2013 at 7:12pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी घनाक्षरी आपको पसंद आई हार्दिक आभार |

Comment by ram shiromani pathak on April 13, 2013 at 7:02pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी!सुन्दर घनाक्षरी रचीं हैं आपने !हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2013 at 10:20am

प्रिय संदीप कुमार पटेल जी आपको  घनाक्षरी पसंद आई उसके लिए हार्दिक आभार बाकी आपको इन दो पंक्तियों में प्रवाह बाधित लग रहा है जो मुझे नहीं लग रहा उसके लिए और विद्वद जनो की प्रतिक्रिया का इन्तजार कर रही हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2013 at 10:16am

प्रिय विन्धयेश्वरी जी घनाक्षरी छंद आपको अच्छे लगे हार्दिक आभार आपका । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 10:00pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम

बहुत ही सुन्दर घनाक्षरी रचीं हैं आपने 

छंद रचने के लिए प्रेरित करती आपकी रचना को साधुवाद 

तत 

\\गीत या निबन्ध हो नवल भाव  सुगंध हो\\ 

\\भाव गहन बढे जो ध्यान नदिया चढ़े जो \\

इन दो पंक्तियों में प्रवाह बाधित सा लग रहा है कृपया एक बार पुनः देख लीजिये 

सादर

स्नेह बनाये रखिये 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 12, 2013 at 6:53pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी! बहुत ही सुन्दर घनाक्षरी छंद और उस पर यह आह्वान की छंदों में ही रचना हो काफी सुखद लगा। बधाई।
मुझे लगता है कि शायद इसमें से पहली घनाक्षरी कहीं पढ़ा गया है।

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