याद तुम्हारी , कितनी प्यारी ,
धीरे-धीरे मन के आँगन में ,
चुपके से आ जाती हे |
याद तुम्हारी , बड़ी दुलारी ,
आँखों से , अंतर मन को ,
परम सुख पहुँचती हे |
कभी हँसाती याद तुम्हारी ,
कभी रूलाती हे मुझको ,
कभी थकाती याद तुम्हारी ,
कभी सुलाती हे मुझको |
याद तुम्हारी धूप छाँव सी ,
कभी हे बदली , कभी बरसती ,
याद तुम्हारी एक नाव सी ,
कभी हे थमती , कभी मचलती |
याद तुम्हारी व्यथित ह्रदय में ,
शूल भेद सी जाती हे ,
याद तुम्हारी तीव्र वेग से ,
मन को तडफा जाती हे |
बस एक बार , सिर्फ़ एक बार ,
माँ तुम वापस आ जाओ ,
लगाकर मुझको अपने हृदय से ,
मेरा बचपन लौटाओ ,
माँ वहीं खड़ा हूँ ,
जहाँ खड़ा था ,
जहाँ तुमको देखा अंतिम बार ,
भूल गया सब रीत जगत की ,
भूल गया सब जग परिवार ,
देख रहा हूँ बस राह तुम्हारी ,
कब तुम वापस आओगी ,
थाम के हाथ अपने प्रिय का ,
अपने संग ले जाओगी ,
वहीं खड़ी हे मेरी नज़रें ,
जहाँ पर तुमने छोड़ दिया ,
ठहर गया अस्तित्व वहीं पर ,
जहाँ पर रास्ता मोड़ लिया ,
याद तुम्हारी उसी मोड़ पर ,
बार -बार ले जाती हे ,
याद तुम्हारी गहन वेदना ,
बन मन पर छा जाती हे ,
याद तुम्हारी -- एक प्रश्न ?
क्या तुम वापस आओगी ?
क्या तुम अपने प्रिय पुत्र को ,
जीवन दर्शन करवाओगी ?
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ० केवल जी ,
आ० वंदना जी ,
उदय सूर्य हुआ , नभ मंडल में , सब दुनिया मे उजियारा हो ,
मन भाव उठें , संग शब्द सजे , तब मन का दूर अंधियारा हो .
आपके स्नेहपूर्ण प्रोत्साहन के लिए आभार ,
सादर ,
अश्क
आ0 अशोक कत्याल जी, सुप्रभात! अतिसुन्दर रचना, हार्दिक बधाई स्वीकेरें। सादर,
सुश्री कुंती जी ,
आपने रचना को सराहा , मन द्रवित हो गया , ये सिर्फ़ एक काव्यात्मक
प्रस्तुति नहीं हे , मेरा जीवन हे , आज भी "माँ " इस स्वरूप मे मेरे साथ
हे , और हमेशा पथ-प्रदर्शक हे ,
आपको कोटि - कोटि ध्न्यवाद ,
अश्क
अश्क जी , आपकी रचना पढ़कर मैं कुछ पल खो सी गयी . काश ऐसा हो सकता ? बचपन में आकाश में तारों के देखकर बिन माँ का बच्चा यही समझता है कि उपर उसकी माँ है .कलांतर में जब उसे सच्चाई का पता चलता है तो वही दुख इस रचना में झलक रही है.
बहुत 2 बधाई . सादर -कुंती.
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