For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को समर्पित ,

 

ये रचना लगभग २५ बर्ष पूर्व लिखी गयी ,
जो आज भी प्रासंगिक है |


मुझे घर ले चलो बापू ,

या खुद आ जाओ ,


वाह| आज क्या मौसम , क्या फ़िज़ा ,
हर ओर आतंकबाद , भ्रष्टाचार की हवा ,
इंसानियत , सख्शियत अब हो गयी खता ,
क्या ये , हम सब एक हैं , होने की सज़ा ,
क्या राजघाट पर सिर्फ़ फूल चढ़ाना काफ़ी है ,

फट चुका बहुत पोस्टर ,

और दस्तक मत दिलवाओ ,
मुझे घर ले चलो बापू ,
या खुद आ जाओ ,

वनों मे अतिक्रमण की काली आँधी ,
जैसे थ्रेचर * की जीत ,
फिर घिर उठे बादल , चार के चौदह ,
धूल हे बस धूल , बारिश नहीं ,
सूखी धरा , हो गयी बुढ़िया नानी ,
हर ओर हो रहा , हाहाकार ,
बाँस वन हूँ मैं ,
मुझे व्यावहारिक मत बनाओ ,
मुझे घर ले चलो बापू ,
या खुद आ जाओ ,

मौत की बैचैनी से खदबदाता मुकाम ,
क्या दिया हे, राजनीति ने हमें ,
अब कहाँ - कहाँ ढूँढे दशानन , कहाँ- कहाँ मनाएँ दशहरा ,
अब तो धूप भी पहाड़ों से उतर आई है ,
तिनके - तिनके बीन कर दिया जला रहा हूँ मैं ,
क्योकि , रोशनी के जश्न की ज़िद थी मुझे ,
थक चुका हूँ बहुत ,
अब और समन्व्य सेतु मत बनाओ ,
मुझे घर ले चलो बापू ,
या खुद आ जाओ ,


किनारे तोड़ रही नदी , अपनी ही लहरों से ,
समय साक्षात्कार कर रहे , अनचाहे लोग ,
दीवारों से झाँकता , भयभीत भविष्य
भूत के आदर्श के , चिथड़े - चिथड़े , कर रहा वर्तमान ,
अपनी पहचान , ज़रूरी हो चली राष्ट्र की पहचान से ,
सह चुका हूँ बहुत ,
अब मील का पत्थर बनाओ ,
मुझे घर ले चलो बापू ,
या खुद आ जाओ ,


मुझे घर ले चलो बापू ,
या खुद आ जाओ ,


अश्क

* मारग्रेट थ्रेचर , ब्रिटिश प्रधानमंत्री , को श्रेय जाता हे , वो जबरदस्त बहुमत
से सत्ता में वापस आयीं थी , अपना ही पुराना रेकॉर्ड ध्वस्त कर |
रचना उसी काल की है , अत: सन्दर्भ डाला गया हे .


मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on April 16, 2013 at 10:47pm
आदरणीय कात्याल जी रचना 25 साल पुरानी भले हो पर वर्तमान के संदर्भ में अत्यन्त प्रासंगिक है।
सादर बधाई स्वीकारें।
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 6:05pm

बड़ी ही गहरी अभिव्यक्ति .............इसके बिम्ब अब ज्यादा प्रभावी जान पड़ते हैं 

सादर बधाई हो आपको 

Comment by राजेश 'मृदु' on April 16, 2013 at 6:01pm

इस संवेदनशील रचना पर ढेरों बधाई, सादर

Comment by Arun Sri on April 16, 2013 at 1:04pm

बहुत बढ़िया ! सशक्त ! वाह !

Comment by Yogi Saraswat on April 16, 2013 at 11:05am

मौत की बैचैनी से खदबदाता मुकाम ,
क्या दिया हे, राजनीति ने हमें ,
अब कहाँ - कहाँ ढूँढे दशानन , कहाँ- कहाँ मनाएँ दशहरा ,
अब तो धूप भी पहाड़ों से उतर आई है ,
तिनके - तिनके बीन कर दिया जला रहा हूँ मैं ,
क्योकि , रोशनी के जश्न की ज़िद थी मुझे ,
थक चुका हूँ बहुत ,
अब और समन्व्य सेतु मत बनाओ ,
मुझे घर ले चलो बापू ,
या खुद आ जाओ ,

सही कहा आपने अश्क साब , ये रचना , ये शब्द आज भी प्रासंगिक हैं !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 16, 2013 at 9:50am

आदरणीय अशोक जी 

सार्थक प्रासंगिक अभिव्यक्ति 

भूत के आदर्श के , चिथड़े - चिथड़े , कर रहा वर्तमान ,
अपनी पहचान , ज़रूरी हो चली राष्ट्र की पहचान से ,......इस एक कारण नें कितनी समस्याओं को जन्म दिया है 

हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 9:37am

२५ वर्ष पूर्व लिखी गई रचना आज भी सामयिक है, कथ्य खुल के आ रहे हैं, बधाई आदरणीय अश्क जी । 

Comment by coontee mukerji on April 15, 2013 at 11:02pm

अश्क जी , बहुत ही दमदार रचना है .बधाई .सादर  कुंती

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 10:59pm

सुन्दर रचना.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 7:54pm

25 वर्ष पूर्व लिखी सुन्दर रचना आज भी प्रासंगिक है | बधाई श्री अशोक कात्याल "अश्क" भाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
23 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service