Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 24, 2013 at 10:00am — 8 Comments
प्रिय मित्र के अमेरिका से अपने देश" भारत " आने पर ,
आपका आपके देश भारत में , तहेदिल से स्वागत है .
…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 22, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
तू ये ना समझना , तेरी याद ने रुलाया है ,
तेरी आँख का कोई आँसू है , मेरी आँख से आया है ,
तू ये ना समझना , तेरे खुशबू ने बुलाया है ,
हवा का कोई झोंका है , तेरे ज़िस्म को छू के आया है ,…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 11:00pm — 7 Comments
"शुभ प्रभात"
उदय सूर्य हुआ , नभ मंडल में , सब दुनिया मे उजियारा हो ,
मन भाव उठे , संग शब्द सजे , तब मन का दूर अंधियारा हो .
जब गूँज उठे , शंख मंदिर मे , आह्लाद सा…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 8:00am — 8 Comments
हास्य - व्यंग
"अंगुली पर नचाती थी"
मेरे एक दोस्त ने, किस्सा कुछ यूँ सुनाया ,
एक मामले में बीमा अफ़सर ने , घोटाला था पाया |
बात, इस हद तक थी बिगड़ी ,
इसमें लगी, उन्हें साजिश कुछ तगड़ी |
मामला था, कि एक महिला की अंगुली कटी ,
अंगुली थी मानो , हीरे से पटी |
अंगुली का हुआ लाखों भुगतान…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 17, 2013 at 8:00am — 8 Comments
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 16, 2013 at 7:30am — 13 Comments
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को समर्पित ,
ये रचना लगभग २५ बर्ष पूर्व लिखी गयी ,
जो आज भी प्रासंगिक है |…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 15, 2013 at 2:00pm — 11 Comments
याद तुम्हारी , कितनी प्यारी ,
धीरे-धीरे मन के आँगन में ,
चुपके से आ जाती हे |
याद तुम्हारी , बड़ी दुलारी ,
आँखों से , अंतर मन को ,…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 12, 2013 at 6:00pm — 15 Comments
वफ़ा ए इश्क़ इस तरह इज़हार करते हैं ,
हम ही से सीख , हम पे वार करते हैं ,
अहमक समझता हे ज़माना , मुस्तकिल तौर पे,
हम उनसे प्यार और वो इनकार करते हैं ,
कब ज़नाज़ा मेरे अर्मा का दर से उनके निकले,
फक्र हे हर वक़्त यही इंतज़ार करते हैं…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 11, 2013 at 8:00pm — 8 Comments
मैं कौन हू ,मैं क्या हू ,
नही जानता ,
मैं खुद ही स्वयं को ,
नहीं पहचानता ,
मैं स्वप्न हू या कोई हक़ीकत ,
मैं स्वयं हू या कोई वसीयत ,
जैसे किसी कॅन्वस पर उतारा हुआ ,
रंगों की बौछारों से मारा हुआ ,
हर किसी के स्वप्न की तामिर हू मैं ,
हक़ीकत नही निमित तस्वीर…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:58am — 15 Comments
ख्वाब यूँ तूफ़ानी हो गए ,
रिश्ते भी जिस्मानी हो गए
,
बदले करवट ज़िंदगी , हर पल हर छिन ,
लक्ष्य भी आसमानी हो गए ,
क्या दिखाएँ जलवा , अपने अश्कों का ,
गम ही किसी की , मेहरबानी हो गए ,
नहीं आता रोना उनके सितम पे ,
फिक्रे वफ़ा , किस्से कहानी हो गए ,
बेहया हो गया ये आँखों का परदा ,
सुना हे जबसे , वे रूमानी हो गए ,
छोड़ दिया मिलना गैरों से हमने ,
बंधन दिलों के ,बेमानी हो गये…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:48am — 6 Comments
देखो जबरदस्त होसला अफजाई ,
बैरी बने बादल और आग चिराग ने लगाई ,
करेंगे अपने बूते , खामोशी से संवाद ,
चौंकाना चाहती हे , दिल से , तन्हाई ,
आशा की लौ मे , मेरी वापसी के संकेत ,
दे ही देगी , तेरी चौतरफ़ा रुसवाई ,
कगार पे आ पहुँचा , अब रोमानी पहलू ,
महज संजोग नहीं है , तेरी बेवफ़ाई ,
थाम ली कमान , आख़िरकार मुहानो की हमने ,
फूटते हुए लावो की , अब…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:00am — 2 Comments
जिधर भी देखा दर्द ही दर्द मिले ,
अपने साए से हुए , चेहरे सर्द मिले ,
किया बेगाना सरे राह हमको ,
मिले भी तो , ऐसे हमदर्द मिले ,
था ज़माना गुलाबी कभी जिनका ,
वही दर्द ए दिल के मारे , आज जर्द मिले ,
गुमान ना था इस कदर कहर नाज़िल होगा ,
फाक़त खंडहर , वो भी ज़रज़र मिले ,
आज़िज़ हे हम अपने ही लहजे से ,
दुरुस्त जिनको समझा , वोही ख़ुदग़र्ज़ मिले…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 10, 2013 at 7:00am — 10 Comments
चमका जैसे कोई तारा ,
हलचल जैसे दूर किनारा ,
निर्मल शीतल गंगा की धारा ,
व्यग्र व्यथित बादल आवारा , बांधना चाहूं पल दो पल ,
तुम............................
दूर-दूर तक धँसी सघन ,
प्रफ्फुलित मन कंपित सी धड़कन ,
घना कोहरा शुन्य जतन ,
बस समय सहारा टूटे ना भ्रम ,
थामना चाहूं कोई हलचल ,
तुम................................
धूप उतरे कहीं पेड़ों से ,
सुकून जैसे बारिश की रिमझिम…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 9, 2013 at 4:01pm — 3 Comments
मेरे पास है --
वैचारिक विमर्श के विविध रूप में
काम आने वाला कबाड़ ,
प्रेम के अप्कर्श का पथ ,
पिछला बाकी सनसनाता डर ,
संजीदा होती साँसें ,
वही पुरानी मजिलें , और
प्रतिभावान काया,
मुझे --
करनी है, सार्थक पहल ,
नाक की लड़ाई के लिए ,
पूछने है सवाल, चुपके चुपके ,
लयात्मक खुश्बू के लिए ,
करने है खारिज़ व बेदखल ,
व्यवस्था विरोध के स्वर ,
चलना…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 9, 2013 at 7:30am — 7 Comments
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