मेरे पास है --
वैचारिक विमर्श के विविध रूप में
काम आने वाला कबाड़ ,
प्रेम के अप्कर्श का पथ ,
पिछला बाकी सनसनाता डर ,
संजीदा होती साँसें ,
वही पुरानी मजिलें , और
प्रतिभावान काया,
मुझे --
करनी है, सार्थक पहल ,
नाक की लड़ाई के लिए ,
पूछने है सवाल, चुपके चुपके ,
लयात्मक खुश्बू के लिए ,
करने है खारिज़ व बेदखल ,
व्यवस्था विरोध के स्वर ,
चलना है साथ-साथ ,
जवाब की तलाश मे ,
मैं जानता हूँ --
जब बदलेंगे रास्ते ;
तो जुड़ेंगे तार ,
होगी साझा हितों में ,
कामयाबी की वारिश ,
रहेगी नब्ज़ पर अंगुली ,
और टुकड़ों - टुकड़ों में गहराई ,
होगा आज़ादी का अहसास ,
तिनके - तिनके सुख के लिए ,
अश्क
१० जून १९९९
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपकी रचनाधर्मिता सार्थक है, आदरणीय अशोक कत्यालजी.
सादर
मस्तिष्क में पल पल कुलबुलाते विचारों के द्वन्द, और उनके सजग एहसास के साथ जीवन पथ पर सामंजस्य बैठाते हुए कामयाबी की मंजिल की ओर बढ़ने की इच्छा,,,समेटी सुन्दर रचना
जब बदलेंगे रास्ते ;
तो जुड़ेंगे तार ,
होगी साझा हितों में ,
कामयाबी की वारिश ,..............इस पंक्ति नें विशेष रूप से प्रभावित किया
बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति के लिए आ० अशोक कत्याल जी
आदरणीय अशोक जी, क्या बात है, बहुत ही उम्दा लेखन, सादर
क्या बात है, बहुत ही उम्दा लेखन, सादर
मुझे --
करनी है, सार्थक पहल ,
नाक की लड़ाई के लिए ,
पूछने है सवाल, चुपके चुपके ,
लयात्मक खुश्बू के लिए ,
करने है खारिज़ व बेदखल ,
व्यवस्था विरोध के स्वर ,
चलना है साथ-साथ ,
जवाब की तलाश मे ,
अशोकजी सार्थक रचना .........बधाई !
अशोक कत्याल जी ,बहुत खूब . अंतिम दोनों पंक्ति उपर के भावों को सार्थक कर दिया है . अति सुंदर .
आदरणीय अशोक कत्याल जी, सादर प्रणाम! ’चलना है साथ.साथ ए
जवाब की तलाश मे’... बहुत सुन्दर कविता, सामाजिक स्वतंत्रता के लिए हम सभी को एक साथ स्वर मिलाना ही होगा। आपको हार्दिक बधाई। सादर,
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