वफ़ा ए इश्क़ इस तरह इज़हार करते हैं ,
हम ही से सीख , हम पे वार करते हैं ,
अहमक समझता हे ज़माना , मुस्तकिल तौर पे,
हम उनसे प्यार और वो इनकार करते हैं ,
कब ज़नाज़ा मेरे अर्मा का दर से उनके निकले,
फक्र हे हर वक़्त यही इंतज़ार करते हैं ,
अक्स यार का बना दिया मेरे ही लहू से ,
कितनी हे वफ़ा , इस तरह इकरार करते हैं ,
मुकरर किया हे निगेरान जिन्हे हर बात में ,
अब वही मौत का सामाअं तैयार करते हैं ,
अश्क
Comment
आदरणीय कत्याल जी
बेहद सुन्दर ख्याल पेश किये हैं आपने इन द्विपदियों के ज़रिए, लेकिन //वफ़ा ए इश्क़ इस तरह इज़हार करते हैं // में "वफ़ा ए इश्क" से आपकी क्या मुराद है ? ज़रा वजाहत फरमाएं.
अशोक कत्याल जी आपके शब्द शैली आपके अन्दर एक अच्छा ग़ज़लकार होने की ओर इशारा कर रही है बाकी सबने कह ही दिया है आप मुख्य पेज पर इंगित किये समूह को क्लिक करके ग़ज़ल विधा में प्रवेश करें आप पढेंगे तो ग़ज़ल विधा की तकनीकियों से परिचित होंगे बहरहाल इस सुन्दर प्रस्तुती पर दाद कबूलें
आदरणिया प्राची जी ,
सादर प्रणाम ,
हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया , में ग़ज़ल विधा को समझना चाहता हूँ ,
साथ ही साथ और अन्य विधाएँ , फलस्वरूप एक सुन्दर रचना बन सके ,
जो तकनीकी एवन व्याकरण की द्रष्टी से भी संपूर्ण हो ,
कृपया किसी किताब का संदर्भ दे सकें तो मेरे लिए अत्यंत हर्ष का बिषेय रहेगा
. साथ ही साथ में सदैव आप सभी के स्नेह एवम् मार्गदर्शन का अभिलाषी रहूँगा .
सदर ,
अश्क
मन में उठते भावों को सुन्दर शब्द दिए हैं...
गज़ल के बहुत करीब है ये रचना, बहुत जल्दी ही सधी हुई गज़ल कहनी सीख जायेंगे.
हम सभी को इंतज़ार रहेगा आपकी गज़लों का.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय अशोक जी कहे को संज्ञान करने हेतु आभार
ये मंच आपको बहुत कुछ सिखाता है बशर्ते आप मे सीखने की ललक होनी चाहिए
मैने भी इसी मंच पर सब सीखा है
गुरुजनों ने अपनी स्नेहिल झिड़कियाँ दे दे कर बहुत कुछ सधवाया है
यकीन मानिए आप स्वयं मे जल्द ही बदलाव पाएँगे
शुभकामनाएँ
आदरणीय संदीप जी / आदरणीय त्रिपाठी जी ,
बहुत आभार , आपने रचना को टिप्पणी लायक स्थान दिया ,
में स्वतंत्र विधा लेखन का अनुयायी हूँ , जिस कारण मात्रा एवम् तकनीकी
खामियाँ नज़र आएँगी , पर मे आप सभी को ये विश्वास दिलाना चाहता हूँ ,
की में इस और पूरा ध्यान दूँगा , और आप सबकी कसोटी पर खरा उतरने
का प्रयास करूँगा , आप सब का स्नेह एवम् मार्गदर्शन आपेच्छित हे .
सादर ,
अश्क
आदरणीय अशोक जी सादर
आपकी इस रचना के भाव सुंदर हैं
लेकिन इन्हे पिरोया सही नहीं गया है
यदि आप ग़ज़ल कह रहे हैं तो फिर वज्नोबह्र पर संयत करें
और यदि आप तुकांत कविता कहने की कोशिश कर रहे हैं तो मात्रा गणना को साधें
आपने कथ्य कहने की क्षमता है तो क्यूँ न उसका शृंगार किया जाए
उसे सँवारा जाए ताकि पढ़ने वाला आह वाह करने में विवश हो जाए
सादर
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