"शुभ प्रभात"
उदय सूर्य हुआ , नभ मंडल में , सब दुनिया मे उजियारा हो ,
मन भाव उठे , संग शब्द सजे , तब मन का दूर अंधियारा हो .
जब गूँज उठे , शंख मंदिर मे , आह्लाद सा अंदर जाग उठे ,
कलरव हो , कँहि दूर गगन , नव संचार सा तन में भाव उठे ,
जब पवन बहे , निर्मल निर्मल , मन मस्तिक सुंदर ज्ञान सजे ,
जब नीर मिले , मिट्टी से जा , सोंधी खुश्बू से ध्यान मंजे ,
मत उंघ पथिक , तू जाग ज़रा , अब आई सुबह की बेला है ,
पहचान ज़रा , अब तू खुद को , बाकी जीवन एक मेला है ,
अश्क
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सुन्दर रचना आदरणीय अश्क जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
माननीय गुरुवर
,
सुप्रभात ,
आपको , रचना के भाव बाँध पाए ,
हार्दिक आभार ,
आपका प्रोत्साहन मुझे संबल देता है ,
मैं तकनीकी रूप से सशक्त होना चाहता हूँ ,
आपकी छोटी सी टिप्पणी भी मेरे लिए उर्जा का कार्य करेगी ,
अत: मुझे इंतज़ार रहेगा , आपकी बहुमूल्य सुझावों का ,
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रातः अभिनन्दन है आदरणीय
इस सुन्दर रचना के हेतु सादर बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय कत्याल साहब, रचना सकारात्मक उर्जा संचार करने में कामयाब है, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |
आदरणीय अशोक कत्याल जी, बहुत सुन्दर भाव रचना के
जिस तरह से सूर्योदय एक नव ऊर्जा का संचार करता है ज़िंदगी की रवानी में , वैसे ही सद्भावों से मन का अन्धकार दूर हो जीवन में एक नया सवेरा होता है..
उत्कृष्ट भावों से पगी अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत बधाई
अशोक जी,बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें।
शुभ प्रभात ! रोज सवेरा होता है, बल्कि मनुज के लिए जब जागे तभी सावरा ! सुन्दर सन्देश देती सापेक्ष सोच से पगी रचना
हार्दिक बधाई श्री अशोक कात्याल "अश्क"जी -
मत उंघ पथिक , तू जाग ज़रा , अब आई सुबह की बेला है ,
पहचान ज़रा , अब तू खुद को , बाकी जीवन एक मेला है , - बहुत खूब
आदरणीय अशोक कत्याल जी, सुप्रभात व सादर प्रणाम! बहुत सुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,
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